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________________ प्रश्न १-मै उठा-इस वाक्य पर (१) अस्तित्व गुण, वस्तुत्व गुण और द्रव्यत्व गुण को कब माना और (२) अस्तित्व गुण, वस्तुत्व गुण और द्रव्यत्व गुण को कब नही माना ? उत्तर-(१) तराजू के एक पलडे मे मुझ आत्मा अस्तित्व गुण के कारण कायम रह कर, वस्तुत्व गुण के कारण अपनी जानने रुप प्रयोजन भूत त्रिया करता हुआ और द्रव्यत्व गुण के कारण निरन्तर जानने रुप परिणमित हो रहा है। तगजू के दूसरे पलडे मे शरीर के उटने रुप अनन्त पुद्गल परमाणु अस्तित्व गुण के कारण कायम रहते हुए, वस्तुत्व गुण के कारण अपनी उटने रुप प्रयोजनभूत क्रिया करते हुये और द्रव्यत्व गुण के कारण निरन्तर परिणमते है। शरीर के उटने रूप पुद्गल परमाणुओ से मुझ निज आत्मा का किसी भी __ अपेक्षा किसी भी प्रकार का कर्ता-भोक्ता का सम्बन्ध नहीं है। ऐसी मान्यता वाले ने निज आत्मा का और शरीर के उठने रूप पुद्गल परमाणुओ के अस्तित्व गुण, वस्तुत्व गुण, और द्रव्यत्व गुण को माना। और (२) शरीर के उठने रुप पुद्गलो के कार्यों मे-मै उठा ऐसी मान्यता वाले ने निज आत्मा का और शरीर के उठने रुप पुद्गलो के अस्तित्व गुण, वस्तुत्व गुण, और द्रव्यत्व गुण को नहीं माना। “प्रश्न २-मै उठा-इस वाक्य पर (१) प्रमेयत्व गुण को कब माना (२) प्रमेयत्व गुण को कब नही माना ? उत्तर-(१) निज आत्मा ज्ञायक और शरीर के उट ने रूप अनन्त पुद्गल परमाणुओ का कार्य व्यवहारनय से मे -- ... ... . वास्तव मे निज आला ज्ञायक है और जानने ऐसे स्व-स्वामी सम्बन्ध से भी कुछ सिद्धि नहीं है ज्ञायक है। ऐसी मान्यता वालो ने प्रमेयत्व गुण शरीर के उठने रुप अनन्त पुद्गलो को कार्यो मे-"." वालो ने शरीर के उठने, रुप अनन्ता पुद्ग ।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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