________________
( १८५ ) है-और शुद्ध निश्चयनय से मै चेतना प्राणवाला भी है-इस प्रकार भ्रमरूप प्रवर्तन से तो निश्चय-व्यवहार दोनो नयो का ग्रहण करना जिनवाणी मे नही कहा है।
प्र० ११६-मै दस प्राणवाला हूं-यदि अनुपचरित असद्भुत व्यवहारनय असत्यार्थ है, तो अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय का उपदेश जिनवाणी मे किसलिये दिया। मै चेतना प्राणवाला हू-ऐसे एक मात्र शुद्ध निश्चयनय का ही निरुपण करना था'
उत्तर-(१) ऐसा ही तर्क समयसार मे किया है । वहा उत्तर दिया है कि जिस प्रकार म्लेच्छ को म्लेच्छ भापा बिना अर्थ ग्रहण कराने को कोई समर्थ नही है। उसी प्रकार मै दस प्राणवाला हूँ-ऐसे अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय के विना मै चेतना प्राणवाला हू-ऐसे परमार्थ का उपदेश अशक्य है। इसलिए मै दस प्राणधाला हूँ-ऐसे अनुपचारित असद्भूत व्यवहारनय का उपदेश है। (२) मै चेतना प्राणवाला हूँ- ऐसे शुद्ध निश्चयनय का ज्ञान कराने के लिये, म, दस प्राणवाला हूँ-ऐसे अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय द्वारा उपदेश देते है । व्यवहारनय, उसका विषय भी है, वह जानने योग्य है, परन्तु अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय अगीकार करने योग्य नहीं है।
प्र० १२०-मै दस प्राणवाला हूं-ऐसे अनुपचरित असद्भूत व्यवहार के बिना, मै चेतना प्राण वाला हू-ऐसे शुद्ध निश्चयनय का उपदेश कैसे नहीं होता ? इसे समझाइये। ___उत्तर-शुद्ध निश्चयनय से आत्मा चेतना प्राणवाला है उसे जो नही पहचानते, उनसे इसी प्रकार कहते रहे तब तो वे समझ नही पाये । इसलिये उनको अनुपचारित असद्भुत व्यवहारनय से आत्मा दस प्राणवाला, नौ प्राणवाला, आठ प्राणवाला है। इस प्रकार प्राण सहित जीव की पहचान हुई।
प्र० १२१-मै दस प्राणवाला हूं-ऐसे अनुपचरित असद्भुत