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ममत्व करने से क्या फायदा ? अब इससे प्रीति करना दुख ही का कारण है । इन्द्रादिक देवो की शरीर पर्याय भी विनाशीक है । जव मृत्यु समय आवे तव इन्द्रादिक देव भी दुखी होकर मुह ताकते रह जाते है और अन्य देवो के देखते-देखते काल के किकर उन्हे उठा ले जाते है, किसीकी यह शक्ति नही है कि काल के किंकरो से उन्हे क्षणमात्र भी रोक ले । इस प्रकार ये काल के फिकर एक-एक करके सवको ले जायेगे। जो अज्ञान वश होकर काल के अधीन रहेगे उनकी यही गति होगी। सो तुम मोह के वश होकर इस पराये शरीरसे ममत्व करते हो और इसे रखना चाहते हो, तुम्हे मोह के वश होने से ससार का चरित्र झूठा नही लगता है। दूसरे का गरीर रखना तो दूर तुम अपना शरीर तो पहले रखो फिर औरो के शरीरके रखने का उपाय करना । आपकी यह भ्रम बुद्धि है जो व्यर्थ ही दु ख का कारण हे कितु यह प्रत्यक्ष होते हुए भी तुम्हे नही दिख रहा है।
प्र० ३८-ज्ञानी माता-पिता से और क्या कहता है ?
उत्तर-ससार में अब तक काल ने किसको छोडा है । और अब किसको छोडेगा? हाय हाय! | देखो, आश्चर्य की बात कि आप निर्भय होकर बैठे हो, यह आपकी अज्ञानता ही है । आपका क्या होनहार है ? यह मै नही जानता हूँ। इसीलिये आपसे पूछता हूँ कि आप को अपना और परका कुछ ज्ञान भी है । हम कौन है ? कहा से आए है ? यह पर्याय पूर्ण कर कहा जायेगे ? पुत्रादि से प्रेम करते है सो ये भी कौन है ? हमारा पुत्र इतने दिन तक (जन्म लेने से पहले) कहा था जो इसके प्रति हमारी ममत्व बुद्धि हुई और हमे इसके वियोग का शोक हुआ? इन सब प्रश्नो पर सावधानी पूर्वक विचार करो और भ्रमरूप मत रहो।
प्र० ३६-ज्ञानी सुखी होने के लिये माता-पिता को क्या बताता
उत्तर-आप अपना कर्तव्य विचारने और करने मे सुखी होओगे।