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यह अधिकार अति उपयोगी जानकर धर्म - जिज्ञासुओ के लिये यहाँ दिया गया 1
प्र० २- यह समाधिमरण किसने बनाया हैं ?
उत्तर- श्री 'बुधजन' जी के शब्दो मे - "यह समाधि - मरण स्वरुप प० श्री टोडरमल जी के सुपुत्र श्री प० गुमानीरामजी कृत ही है ।" प्र० ३ - समाधिमरण किसे कहते है ?
उत्तर - हे भव्य । तू सुन । समाधि नाम नि कषाय का है, गान्त परिणामो का है, कपाय रहित शात परिणामो से मरण होना समाधिमरण है । सक्षिप्त रुप से समाधिमरण का यही वर्णन है विशेष रूप से कथन आगे किया जा रहा है ।
प्र० ४ - सम्यग्ज्ञानी क्या इच्छा करता है ?
उत्तर - सम्यक्ज्ञानी पुरुष का यह सहज स्वभाव ही है कि वह समाधिमरण ही की इच्छा करता है, उसकी हमेशा यही भावना रहती है, अन्त मे मरण समय निकट आने पर वह इस प्रकार सावधान होता है जिस प्रकार वह सोया हुआ सिंह सावधान होता है जिसको कोई पुरुष ललकारे कि हे सिह। तुम्हारे पर बैरियो की फौज आक्रमण कर रही है, तुम पुरुषार्थ करो और गुफा से बाहर निकलो जब तक बैरियो का समूह दूर है तब तक तुम तैयार हो जाओ बैरियो की फौज को जीत लो । महान पुरुषो को यही रीति है कि वे शत्रु के जागृत होने से पहले तैयार होते है ।
उस पुरुष के ऐसे वचन सुनकर शार्दूल तत्क्षण ही उठा और उस ने ऐसी गर्जना की कि मानो आषाढ मास मे इन्द्र ने ही गर्जना क हो । सिह की गर्जना सुनकर बैरियो की फौज मे जो हाथी घोडा आदि थे वे सब कम्पायमान हो गये और वे सिह को जीतने मे समर्थ नही हुए। हाथियो ने आगे कदम रखना बन्द कर दिया उनके हृदय मे सिह के आकार की छाप पड गई है इसलिये वे धैर्य नही धारण कर रहे, क्षण-क्षण में निहार करते है, उनसे सिह के पराक्रम का मुक