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भी किया है ? यदि यही विघ्न हो तो मुनि आदि त्यागी तपस्वी तो
इन कार्यो को अगीकार करते है, इसलिये विघ्न का मूल कारण _अज्ञान-रागादि है, इस प्रकार दुख व विघ्न का स्वरूप जानो ।
प्र० ३४--इच्छा के अभाव का क्या उपाय है ? उत्तर-उसका इलाज सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है।
प्र० ३५-आपने इच्छा के अभाव का उपाय सम्यग्दर्शनादि बताया है उसकी प्राप्ति कैसे हो?
उत्तर-(१) केवलज्ञानी के केवलज्ञान को मानने से इच्छा का __ अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है। (२) निज आत्मा
से परद्रव्यो का सर्वथा सम्बन्ध नही है-ऐसा मानने से इच्छा का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है। (३) जैसा वस्तु स्वरुप है वैसा माने-जाने तो इच्छा का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है । (४) मुझ आत्मा ज्ञायक और लोकालोक व्यवहार से ज्ञेय है - ऐसा मानने से इच्छा का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है । (५) पदार्थ इष्ट-अनिष्ट भासित होने से क्रोधादिकषाये होती है जव तत्त्व ज्ञान के अभ्यास से कोई पदार्थ इष्टअनिष्ट न हो तव चारो प्रकार की इच्छा का अभाव होकर स्वयमेव ही धर्म की प्राप्ति हो जाती है।
पचास प्रश्नोत्तरों के रुप में
“समाधि-मरण का स्वरूप" प्र० १- इस समाधिमरण का स्वरूप किस शास्त्र मे से लिया है ?
उत्तर-आचार्य कल्प श्री प० टोडरमल जी के सहपाठी और धर्म प्रभावना मे उत्साह प्रेरक श्रीयुत्त व्र० रायमलजी कृत "ज्ञानानन्द निर्भर निजरस श्रावकचार" नामक ग्रथ (पृ० २२४ से २४३) मे से