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भूमि के मनुष्य या भोगभूमि के तिर्यच होते है । कदाचित नरक मे जाये तो पहले नरक से नीचे नही जाते है | (३) तीन लोक और तीन काल मे सम्यग्दर्शन के समान सुखदायक अन्य कोई वस्तु नही है । ( ४ ) और सम्यग्दर्शन ही सब धर्मो का मूल है । सम्यग्दर्शन के बिना जितने क्रियाकाड है वे सब दुखदायक है ।
प्र० EE - ( १ ) मोक्षमहल मे पहुंचने की प्रथम सोढी कौन सी है ? (२) सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान चारित्र क्या है ? (३) पात्र जीव को क्या करना चाहिए (४) पं० जी की सीख क्या हे ? (५) और सम्यक्त्व प्राप्त न किया तो क्या होगा ?
उत्तर - मोक्ष महल की प्रथम सीढी, या विन ज्ञान चरित्रा, सम्यक्ता न लहै, सो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा | 'दौल' समझ, सुन, चेत, सयाने, काल वृथा मत खोवै, यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक नहि हौवे ||१७|| भावार्थ - (१) सम्यग्दर्शन ही मोक्षरुपी महल मे पहुँचने की प्रथम सीढी है । (२) सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान मिथ्याज्ञान और चारित्र मिथ्या चारित्र कहलाता है । ( ३ ) इसलिये प्रत्येक आत्मार्थी को निज आत्मा का आश्रय लेकर सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिये (४) दौलतराम जी कहते है - 'हे विवेकी आत्मा । तू पवित्र सम्यग्दर्शन के स्वरूप को स्वय सुनकर अन्य अनुभवी ज्ञानियों से प्राप्त करने मे सावधान हो, अपने मनुष्य जीवन को व्यर्थ न खो । ( ५ ) और इस मनुष्य जन्म मे यदि सम्यक्त्व प्राप्त न किया तो फिर मनुष्य पर्याय आदि अच्छे योग पुन पुन प्राप्त नही होते है ।
प्र० १०० - मोक्षमार्ग प्रकाशक नवमे अधिकार मे इस विषय मे क्या बताया है
?
उत्तर- ( १ ) जो विचारशक्ति सहित हो और जिसके रागादिक मन्द हो वह जीव पुरुषार्थ से उपदेशादिक के निमित्त से तत्त्व निर्ण