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प्र० ६५ - छह अनायतन और तीन मूढता दोष क्या-क्या है जो सम्यग्दृष्टि मे नही पाये जाते है ?
उत्तर - कुगुरू-कुदेव - कुवृष सेवक की नहि प्रशस उचर है । जिन मुनि जिन श्रुत बिन कुगुरूादिक, तिन्हें न नमन करे है || १४ | भावार्थ - (१) कुगुरू, कुदेव, कुधर्म, कुगुरूसेवक, कुदेव सेवक तथा तथा कुवमसेवक - यह छह अनायतन दोप कहलाते है । उनकी भक्ति विनय और पूजनादि तो दूर रही, किन्तु सम्यग्दृष्टि जीव उनकी प्रशसा भी नही करता, क्यो कि उनकी प्रशसा करने से भी सम्यक्त्व मे दोष लगता है । (२) सम्यग्दृष्टि जीव जिनेन्द्र देव, वीतरागीमुनि, और जिनवाणी के अतिरिक्त कुदेव, कुगुरु और कुशास्त्रादि को भयआशा - लोभ और स्नेह आदि के कारण भी नमस्कार नही करता, क्योकि उन्हे नमस्कार करने मात्र से भी सम्यक्त्व दूषित हो जाता है । (३) गुरू सेवा, कुदेव सेवा तथा कुधर्म सेवा — यह तीन भी सम्यक्त्व के मूढता नामक दोष है ।
प्र० ६६ - सम्यग्दृष्टि जीव कौन हैं ?
उत्तर - शकादि आठ दोप, आठ मद तीन मूढता और छह अनायतन - ये पच्चीस दोप जिसमे नही पाये जाते है - वह जीव सम्यग्दृष्टि है ।
प्र० ७ - ( १ ) नया अवतो सम्यग्दृष्टि की देवो द्वारा पूजा (२) और गृहस्थपने मे अप्रीति होती है ?
उत्तर-दोष रहित गुण सहित सुधी जे, सम्यग्दरश सजै है | चरित मोहवश लेश न सजम, पै सुरनाथ जजै है । गेही, पै गृह मे न रचे ज्यो जलते भिन्न कमल है । नगर नारि कौ प्यार यथा, कादे मे हेम अमल है ||१५|| भावार्थ:- ( १ ) जो विवेकी पच्चीस दोष रहित तथा आठ गुण सहित