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मोक्ष को पहिचानकर उसको अपना परम हित प्रगट करने योग्य माने - ऐसा तत्त्वार्थ श्रद्धान का ज्यो का त्यो अभिप्राय है ।
प्र० ८ - 'इहिविध जो सरधा तत्वन को, सो समकित व्यवहारी' इसका भाव क्या है ?
उत्तर- इस प्रकार प्रश्नोत्तर ३८ से ५८ प्रश्नोत्तर तक सात तत्त्वो का भेद सहित श्रद्धा न करना सो व्यवहार सम्यग्दर्शन है ।
प्र० ६० - निश्चय सम्यग्दर्शन का निमित्त कारण कौन है और उसे व्यवहार से क्या कहा जाता है ?
उत्तर - देव, जिनेन्द्र, गुरु परिग्रह विन, धर्म दयाजुत सारो | ये हु मान समकित को कारण । भावार्थ - जिनेन्द्रदेव, वीतरागी दिगम्बर जैन गुरु तथा जिनेन्द्र प्रणीत अहिसामय धर्म भी उस व्यवहार सम्यदर्शन के (निमित्त ) कारण है । अर्थात इन तीनो का यथार्थ श्रद्धान | भी व्यवहार सम्यग्दर्शन कहलाता है ।
प्र० ९१ - सम्यक्त्व को किससे सहित और किससे रहित धारण करना चाहिये ?
उत्तर- अष्ट- अग जुत धारो । वसुमद टारि, निवारि त्रिशठता, षट् अनायतन त्यागो | शकादिक वसु दोष विना, सवेगादिक चित्त पागो । भावार्थ - ( १ ) उस सम्यग्दर्शन को आठ अगो सहित धारण करना चाहिए । (२) आठ मद, तीन मूढता, छह अनायतन, और आठ शकादि दोप- इस प्रकार सम्यक्त्व के पच्चीस दोषो का त्याग करना चाहिए । (३) सवेग, अनुकम्पा, आस्तिक्य और प्रशम सम्यग्दृष्टि पाए जाते है |
प्र० ९२ - जब जीव को सम्यक्त्व होता है जो उसमे आठ अंग