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________________ ( ११० ) धन्धतत्व का ज्यों का त्यों श्रद्धान प्र० ६०-छहढाला मे 'वन्धतत्व का ज्यो का त्यों श्रद्धान के विषय में क्या बताया है ? उत्तर-जीव प्रदेश वध विधि सो सो, बन्धन कबहुँ न सजिये। भावार्थ-(१) राग परिणाम मात्र ऐसा जो भाववन्ध है वह द्रव्यबन्ध का हेतु होने से वही निश्चय वन्ध है जो छोडने योग्य है। (२) तत्व दृष्टि से तो पुण्य-पाप दोनो बन्धन कर्ता ही है-यह 'वन्ध तत्व का ज्यों का त्यो श्रद्धान' छहढाला मे बताया है। प्र०६१-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभों ने 'बन्धतत्व का ज्यों का त्यों का श्रद्धान किसे बताया है? उत्तर-(१) अघाति कर्म के फल अनुसार पदार्थों की सयोगवियोग रुप अवस्थाये होती है। सम्यग्दृष्टि उनको व्यवहार से ज्ञान का ज्ञेय मानता है । (२)पुण्य-पाप का बन्ध वह पुद्गल की अवस्थाये है। उनके उदय से जो संयोग प्राप्त हो वे भी क्षणिक सयोग रुप से आते-जाते है जितने काल तक वे निकट रहे उतने काल भी वे सुखदुख देने को समर्थ नहीं है। (३) शुभाशुभ भाव वह ससार है। इसलिये उसकी रुचि छोडकर, स्वोन्मुख होकर निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान पूर्वक निज आत्म स्वरुप मे लीन होना ही जीव का कर्तव्य है। पुण्य-पाप-फल माहि, हरख बिलखौ मत भाई, यह पुद्गल परजाय, उपजि विनसै फिर थाई। लाख बात की बात यही, निश्चय डर लाओ, तोरी सकल जग दद-फन्द, नित आतम ध्याओ॥६॥ (४) (अ) कर्म योग्य पुद्गलो से भरा हुआ लोक है सो भले रहो, (आ) मन-वचन-काय का चलन स्वरूप कर्म (योग) है सो भी भले
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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