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उत्तर-केवली के समान 'आस्रवलत्क- का ज्यो का त्यो श्रद्धान' करते है और पुण्य-पाप रहित ज्ञान-दर्शन उपयोगमयी अबन्ध स्वभावी निज आत्मा मे विशेष एकाग्रता करके परमात्मा बन जाते है।
प्र० ५७-जिन जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'आस्रवतत्व का ज्यो का त्यों श्रद्धान' सुनकर सम्यक्त्व के सम्मुख पात्र भव्य मिथ्याष्टि जीव क्या जानते है और क्या करते है ?
उत्तर-अहो। अहो। जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, 'आस्रवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' महान उपकारी है। मुझे तो इसका पता ही नही था-ऐसा विचार कर पुण्य-पाप रहित ज्ञानदर्शन उपयोगमयी अवन्ध स्वभावी निज आत्मा का आश्रय लेकर वहिरात्मपने का अभाव करके अन्तरात्मा बनकर ज्ञानी की तरह निज आत्मा मे विशेष एकाग्रता करके परमात्मा बन जाता है।
प्र०५८-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभों से कथित 'आस्रवतत्व का ज्यो का त्यों श्रद्धान' सुनकर दीर्घ ससारी मिथ्याष्टि क्या जानते है और क्या करते है ?
उत्तर-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'आस्रवतत्व का ज्यौ का त्यौ श्रद्धान' का विरोध करते है और चारौं गतियौ मे घूमते हुए निगोद मे चले जाते है।
प्र० ५६-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभों से कथित 'आस्रवतत्व का ज्यों का त्यों श्रद्धान' का विशेष स्पष्टीकरण कहा देखे ?
उत्तर-जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला भाग तीसरा पाठ पहिले मे ३४७ प्रश्नोत्तर से ३६० प्रश्नोत्तरो तक देखियेगा।