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________________ (४) जिनेन्द्र भगवान की पूजा, गुरु सेवा, स्वाध्याय, तप, सयम और दान ये छह आवश्यक श्रावक को प्रतिदिन करना चाहिए, अगर वह हमेशा नही करे तो श्रावक कहलाने योग्य नहीं है। (५) जो जिनेन्द्र देव के दर्शन प्रतिदिन नही करता वह पत्थर की नाव के समान है। (६) यदि यह आत्मा दो घडी पुद्गल द्रव्य से भिन्न अपने गुद्ध स्वरूप का अनुभव करे (उसमे लीन हो) परिषह के आने पर भी डिगे नही तो घातिया कर्म का नाश करके केवल ज्ञान उत्पन्न करके मोक्ष को प्राप्त हो । जब आत्मानुभव की एसी महिमा है तब मिथ्यात्व का नाग करके सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होना तो सुगम है, इसलिए श्री गुरु ने प्रधानता से यही उपदेश दिया है। (७) जामे जितनी बुद्धि है, उतनो देय बताय । वाको बुरा न मानिए, और कहा से लाय । (८) सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही मोक्षमार्ग है। (६) ज्ञानीजन पुण्य-पाप मे हर्ष-विषाद नहीं करते । (१०) जीव-अजीव को पहिचाने विना भेदविज्ञान नही होता । (११) सम्यक्दर्शन के बिना ज्ञान-चरित्र मिथ्या है। (१२) भेदविज्ञान के बिना सम्यक्दर्शन नही होता । (१३) पर्याय मे उत्पन्न हुआ विकार क्षणिक एव आकुलतामयी (१४) अशुभभाव नरक निगोद का कारण है। (१५) शुभभाव स्वर्गादिक का कारण है मोक्ष का कारण नहीं है (१६) शुद्धोपयोग मोक्षमार्ग और मोक्ष है ।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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