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चहुंगति चारि सर्प बैठे अजगर निगोद मुंह फारे है, काल बलि गज खड़ा शीश पर चीख चीख हुकारे है। आयु कर्म डाली को पकडे लटक रहा ससारी नर, उसी डालको काट रहे है रात दिना दो चूहे जर ॥१५॥ टूट जायगी क्षणभर मे अब टहनी ये गिर जायेगा, अजगर या इन चारो सो मे से कोई खायेगा। विषय भोग मधु छत्ता मधु की बूंद विषय की आशा है, मधु मक्खी परिवार कुटुम्बी देते निशदिन त्रासा है ।।१६।। श्री गुरुदेव विद्याधर सच्चे विद्याधरनी जिनवानी है, बार बार कहने पर भी विपयी नर एक न मानी है। वर्तमान मे गुरुदेव समझा समझा कर हारे हैं, पर हमने मानी न एक भैय्या दुर्भाग्य हमारे हैं ॥१७॥
(२७) बाल-यौवन-मध्यावस्था और बुढ़ापा चारों पन व्यर्थ खोने वाला सेवक
(पं० मक्खनलाल) एक भक्त राजा का सेवक सेवा निश दिन करता था, कष्ट न होने देता नृप को दुख शोक सब हरता था । हे नप मिले पारितोषिक कुछ हमको यो नित कहता था, किन्तु महालोभी नृप इसको शुष्क टलाना चहता था ॥१॥ ढूंढि निकाला एक बहाना नृप ने शुष्क टलाने का, सेवक लो मैं देता हू अवसर अटूट धन पाने का। खोलि देऊ रत्नो का कोठा सुबह छ बजे आजाना, ढले तीन घटे मे तुमसे ले जामो धन मन माना ॥२॥