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बढी वेदना अधिक अग मे हाहाकार मचाता है, उसी समय पत्नी युत नभ मे विद्याधर इक आता है ॥८॥ वोलीनारि अहो पति देखो ये नर क्या दुख पाता है, मारि मारि करि पाँव वृक्ष से भारी रुदन मचाता है । कृपा करो हे नाथ इसे इस दुख से शीघ्र छुडा दीजे, बैठाकर विमान मे इसको इसके घर पहुँचा दीजे ॥६॥ हे प्यारी ये नही चलेगा इसी कष्ट मे राजी है, चाटि शहद की बूद सभी दुख भूलि जाय ये पाजी है । नही नही हे नाथ भला को दुख मे रहना चाहेगा, देहु इसे आवाज अभी ये साथ तुम्हारे जायेगा ||१०|| इस सकट से इसे छुडावो ये ही धर्म तुम्हारा है, भला होय इस दुखिया का कुछ बिगडे नही हमारा है । प्रिये तुम्हारे कहने से मैं इसको अभी बुलाता हू, किन्तु नही चलने का ये मैं तुम्हे ठीक बतलाता हू ॥११॥ बोला विद्याधर रे दुखिया तेरा कष्ट मिटा देंगे, बैठि चलौ जल्दी विमान मे तेरे घर पहुचा देगे । कहा दुखित ने नाथ बड़ा मजा आता
चखि लेने दो, ठहरने दो ||१२||
अभी इक बूंद और है इसमे थोडी देर
थोडी देर बाद विद्याधर बोला अब आजा भाई,
आई ।
अभी मुह मे धुनि सिर रोता है,
जरा और धमि जाओ शहद की बूंद पुन मक्षिकाओ ने काटा तव धुनि फिर टपकी इक बूंद शहदकी उसे चाटि खुश होता है ॥ १३॥ यह कौतुक लखि विद्याधर विद्याधरनी तो जाते है, ये तो है दृष्टान्त सुनो तुमको द्राष्टान्त सुनाते है । भव बन अन्धे कूये मे ससार वृक्ष चौरासी लाख योनि बड़ी शाखायें न्यारी
अति भारी है, न्यारी है ॥ १४ ॥