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- तथा समयसार मे सौवी गाथा के चार वोल जिस प्रकार हैं उसी प्रकार समझने से मोक्षमार्ग मे प्रवृत्ति होती है ।
" [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २५६ ] प्रश्न ३८ - समय थोड़ा है हम पढे लिखे कम हैं, हमे तो ऐसा उपाय बताओ ताकि हमारा कल्याण तुरन्त हो जाये ? उत्तर - सज्ञी पचेन्द्रिय को इतना ज्ञान का उघाड है कि वह अपना कल्याण तुरन्त कर लेवे । मात्र जो स्वय अनादि अनन्त हैं 'उसकी ओर दृष्टि करते ही चारो गतियो का अभाव हो जाता है । अरे भाई मात्र दृष्टि बदलनी है । दृष्टि बदलते ही तू स्वय भगवान पर्याय में बन जावेगा किसी से पूछना नही पडेगा ।
प्रश्न ३६- फिर भी हम किन शास्त्रो का अभ्यास करें ताकि हमारी दृष्टि बदलकर अपने को अनुभव करे ?
उत्तर - मोक्षमार्ग प्रकाशक, लघु जैन सिद्धान्त प्रवेशिका, छहढाला की दूसरी ढाल, योगसार के दोहों का निरन्तर स्मरण तथा मुख्य रूप से जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला के सात भागो का अभ्यास करके उसके अनुसार अपनी आत्मा का आश्रय ले, तो अपना अनुभवज्ञान तुरन्त होवे और क्रम से मोक्ष रूपी सुन्दरी का नाथ बने ।
प्रश्न ४० - निरन्तर स्मरण रखने योग्य पाँच बोल क्याक्या हैं ?
उत्तर- ( १ ) अनादिकाल से आज तक किसी भी परद्रव्य ने मेरा भला-बुरा किया ही नही । ( २ ) अनादिकाल से आज तक मैंने भी किसी भी परद्रव्य का भला बुरा किया ही नही, (३) अनादिकाल से आज तक नुक्सानी का ही धधा किया है, यदि नुक्सानी का धवा ना किया होता तो ससार परिभ्रमण मिट गया होता, सो हुआ नही, (४) वह नुक्सानी मात्र एक समय की पर्याय में हैं द्रव्य - गुण मे नही है, (५) यदि पर्याय की नुक्सानी मिटानी हो और पर्याय मे शान्ति लानी हो तो एकमात्र अपने अनन्त गुणो के अभेद पिण्ड की ओर दृष्टिकर |