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उत्तर-पुण्य-पाप रुप अशुद्ध भाव का उत्पन्न ना होना नास्ति से भाव सवर है और शुद्धि की उत्पति होना अस्ति से भाव सवर है ।,
प्रश्न ३०-अगृहीत मिथ्यादर्शन के कारण अज्ञानी जीव संवर तत्व के विषय मे क्या मानता है ?
उत्तर-"आतमहित हेतु विराग ज्ञान, तै लखै आपको कष्ट दान" । निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र जीव को हितकारी है ! परन्तु अगृहीत मिथ्यादर्शन के कारण उनको कष्टदायक माननासवरतत्व सम्बन्धी जीव तत्व का उल्टा श्रद्धान है।
प्रश्न ३१-नास्ति और अस्ति भाव निर्जरा क्या है ?
उत्तर-अशुद्धि की हानि नास्ति से भाव निर्जरा है और शुद्धि की वृद्धि अस्ति से भाव निर्जरा है।
प्रश्न ३२-~अगृहीत मिथ्यादर्शन के कारण अज्ञानी जीव निर्जरा तत्व के विषय से क्या मानता है ?
उत्तर-"रोके न चाह निज शक्ति खोय" । आत्मा मे एकाग्र होकर शभाशभ कर्मों की इच्छा उत्पन्न ना होने से निज आत्मा की शुद्धि का बढना वह तप है। उस तप से निर्जरा होती है, वह त सुखदायक है। परन्तु अगृहीत मिथ्यादर्शन के कारण उसे कष्टदायक मानना और आत्मा की ज्ञानादि अनन्त पाक्तियो को भूलकर पाँच इन्द्रियो के विषय मे सुख मानकर प्रीति करना-यह निर्जरा तत्व सम्बन्धी जीव तत्व का उल्टा श्रद्धान है।
प्रश्न ३३-नास्ति से और अस्ति से भावमोक्ष क्या है ?
उत्तर-सम्पूर्ण अशुद्धि का सर्वथा अभाव होना नास्ति से भावमोक्ष है और सम्पूर्ण शुद्धि का प्रगट होना अस्ति से भावमोक्ष है।
प्रश्न ३४-अगृहीत मिथ्यादर्शन के कारण अज्ञानी जीव मोक्षतत्व के विषय मे क्या मानता है ? । उत्तर-"शिवरूप निराकुलतान जोय" । सम्पूर्ण शुद्धि प्रगट. होने से सम्पूर्ण आकुलता का अभाव है, पूर्ण निराकुल स्वाधीन सुख है। परन्तु अगृहीतमिथ्यादर्शन के कारण शरीर के मौज-शौक में ही