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________________ ( ४७ ) उत्तर- (१) अमूर्तिक प्रदेशो का पुज, (२) प्रसिद्ध ज्ञानादि गुणो का धारी, (३) अनादिनिधन, (४) वस्तु स्व है और ( १ ) मूर्तिक पुदूगल द्रव्यो का पिण्ड, (२) प्रसिद्ध ज्ञानादिको से रहित, ( ३ ) जिनका नवीन सयोग हुआ ऐसे शरीरादिक, (४) पुद्गल पर है । प्रश्न १७ - सबसे बड़ा पाप क्या है ? उत्तर - मिथ्यात्व है क्योकि मिथ्यात्व को सात व्यसनो से भी भयकर बडा पाप कहा है । भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने गाया १४ मे कहा है कि "आत्मा रागादि और शरीरादिक से असयुक्त होने पर भी सयुक्तजैसा प्रतिभास ही ससार का वीज है अर्थात् महान मिथ्यात्व है ।" 、 प्रश्न १८ - मिथ्यात्व कितने प्रकार का है ? 1 उत्तर - अगृहीत मिथ्यात्व और गृहीत मिथ्यात्व के भेद से दो प्रकार का है । जो अनादिकाल से एक-एक समय करके बिना सिखाये ही चला आ रहा है वह अगृहीत मिथ्यात्व है और मुख्य रूप से मनुष्य जन्म पाने पर कुगुरु- कुदेव कुधर्म के निमित्त से नया-नया ग्रहणकरता है वह गृहीत मिथ्यात्व है । प्रश्न १६ -- अग्रहीत मिथ्यादर्शन क्या है ? उत्तर--"जीवादि प्रयोजनभूत तत्व सरधै तिनमाहिं विपर्ययत्व" जीव, अजीव, आस्रब-बघ सवर - निर्जरा और मोक्ष यह सव प्रयोजनभूत तत्व हैं इनका उल्टा श्रद्धान करना अगृहीत मिथ्यादर्शन है । प्रश्न २० - जीवादि सात तत्व प्रयोजनभूत तत्त्व किस प्रकार हैं ? उत्तर - अपना त्रिकाली ज्ञायक जीवतत्व आश्रय करने योग्य प्रयोजनभूत तत्त्व है। अजीवतत्त्व जानने योग्य प्रयोजनभूत तत्त्व है । आस्रव वध तत्त्व छोडने योग्य प्रयोजनभूत तत्त्व हैं । सवरनिर्जरा तत्त्व एकदेश प्रगट करने योग्य प्रयोजनभूत तत्त्व है और मोक्षतत्त्व पूर्ण प्रगट करने योग्य प्रयोजनभूत तत्व है ।
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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