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उत्तम फल चरण चढता हूँ, निर्वाण महाफल हो स्वामी। हे पच परम परमेष्ठी प्रभु, भव दुख मेटो अन्तर्यामी ।। ॐ ह्री श्री पचपरमेष्ठिभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फल निर्वपामीति स्वाहा । जल चन्दन अक्षत पुष्प दीप, नैवेद्य धूप फल लाया हूँ। अव तक के सचित कर्मों का, मैं पुञ्ज जलाने आया हूँ। यह अर्घ समर्पित करता हूँ, अविचल अनर्घ्यपद दो स्वामी। हे पत्र परम परमेष्ठी प्रभु, भाव दुख मेटो अन्तर्यामी । ॐ ह्नी श्री पच परमेष्ठिभ्यो अनध्य पद प्राप्तये अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला जय वीतरागसर्वज्ञ प्रभो, निज ध्यान लीन गुणमय अपार । अष्टादस दोष रहित जिनवर, अर्हत देव को नमस्कार ।। अविकल अविकारी अविनाशी, निजरूप निरजन निराकार। जय अजर अमर हे मुक्तिकत, भगवत सिद्ध। को नमस्कार ॥ छतीस सुगुण से तुम मण्डित, निश्चय रत्नत्रय हृदय धार । हे मुक्ति वधू के अनुरागी, आचार्य सुगुरु को नमस्कार ।। एकादश अग पूर्व चौदह के, पाठी गुण पच्चीस धार । बाह्यान्तर मुनि मुद्रा महान्, श्री उपाध्याय को नमस्कार ।। व्रत समिति गुप्ति चारित्र धर्म, वराग्य भावना हृदय धार । हे द्रव्य भाव सयम मय मुनि, सर्व साधु को नमस्कार ।। बहु पुण्य सयोग मिला नरतन, जिनश्रुत जिन देव चरणदर्शन । हो सम्यग्दर्शन प्राप्त मुझे, तो सफल बने मानव जीवन ॥ निज पर का भेद जानकर मैं, निज को हो निज मे लीन करूं। अब भेद ज्ञान के द्वारा मैं, निज आत्म स्वय स्वाधीन करूं ।। निज मे रत्नत्रय धारण कर, निज परणिति को ही पहचान । पर परणति से हो विमुख सदा, निज ज्ञान तत्व को ही जानू ।। जब ज्ञान ज्ञेय ज्ञाता विकल्प तज, शुक्ल ध्यान में ध्याऊँगा। तब चार घातिया क्षय करके, अहंत महापद पाऊंगा ।। ।