________________
( ११६ )
सुन साबू की बात युवक घर वालो के अजमाने को, बनकर के बीमार खाट पर पडा न खाया खाने को । अरे मरा रे मरा पेट मे दर्द वडा सर फटता है, हाथ पाव टूटे छाती मे धड़कन सास भटकता है ||८| यो कह सास घोट चुपका हो पडा मृतक सावन करके, मरा जानि सारे घर वाले रोते हैं सर धुनि मुनि के । माता पिता रोते तेरे बिन हमको कौन खवावेगा, भावी रोती देवर तुम बिन कौन साडियां लावेगा ||६|| भैया रोते हैं भैया तुम ही तो एक कमाऊ थे, हम सब तो घर वाले तेरे पीछे खाऊ थे । रोती नारी नाथ तुम विन अब जेवर कौन घढावेगा, बिना तुम्हारे मुझ दुखिया को घर मे को अपनावेगा ॥ १०॥ अरे मरे हम हाय मरे हम यो कह रुदन मचाते है, उसी समय वे साधु वहाँ पर वैद्यराज वनि आते हैं । कोई इलाज करा लो हम से फीस नही हम लेते हैं, एक खुराक दवा से मुर्दों को जिन्दा कर देते हैं ॥। ११॥ पडा शब्द कानो मे इनके तुरन्त दोडकर आते हैं, ast विनय से वैद्यराज को अपने घर ले जाते हैं ।
मुद को शीघ्र जिला दीजे, हलाहल जहर पिला दीजे ॥ १२ ॥ क्या तरकीब निकाली है, राख जरा सी डाली है । पीले वो तो मर जावेगा, मुर्दा जिन्दा हो जावेगा ||१३|| वैद्यराज की वानी को, कोई न पीवे पानी का ।
है हकीम जी या तो इस वरना हम मर जाय सभी अच्छा कहकर वैद्यराज ने लोटा एक मगाकर पानी जो इस लौटे का पानी किन्तु अभी सब के आगे छक्के छूट गये सबके सुन हुये सभी चित्राम सरीखे