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(६८ ) को साधना जानता है । बाह्यभाव बाह्य निमित्तरूप मानता है, वह निमित्त नानारूप है, एकरूप नही है । अन्तर्दृष्टि के प्रमाण मे मोक्षमार्ग साधे और सम्यग्ज्ञान स्वरूपाचरण की कणिका जागने पर मोक्षमार्ग सच्चा । मोक्षमार्ग को साधना वह व्यवहार, शुद्ध द्रव्य अक्रियारूप सो निश्चय । इस प्रकार निश्चय-व्यवहार का स्वरूप सम्यग्दृष्टि जानता है । मूढ जीत्र न जानता है न मानता है।
[मोक्षमार्गप्रकागक परमार्थ वचनिका पृ० १३-१४] (3) सम्यग्दशन होने पर नियम से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है चाहे देर लगे, इसलिए जिसकी अन्तरग श्रद्धा सच्ची है उसका फल केवलज्ञान है। सम्यग्दृष्टि के ज्ञान मे और केवलज्ञान मे जानने मे फरक नहीं है, मात्र प्रत्यक्ष परोक्ष का भेद है।
प्रकरण दूसरा-जीव ज्ञान स्वभावी है (१) ज्ञान का जीव उपादान कारण है और वह ज्ञान उपादेय है जो कि यावत् द्रव्य मात्र मे रहता है।
1 [धवल पुस्तक ७ पृ० ६५-६६] (२) ज्ञानदर्शन जीव का लक्षण है-उपयोग जीव का लक्षण है। जिसके अभाव से जीव का अभाव होता है। इसलिए ज्ञान-दर्शन व "उपयोग जीव का लक्षण है। [धवल पुस्तक ५ पृ० २२३]
(३) प्रश्न-सयम, कषाय जीव का लक्षण नहीं कहा उसका या कारण है?
उत्तर-सयम जीव का लक्षण नहीं है क्योकि सयम के अभाव से जीव का अभाव नहीं होता। [धवल पुस्तक ७ पृष्ठ ६६] काय जीव का लक्षण नही है क्योकि कषाय कर्म जनित
[धवल पुस्तक ५ पृष्ठ २२३]