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________________ ( ८३ ) पाया जाता है । यही भाव दुखो के बीज हैं अन्य कोई नही । इसलिए हे भव्य । यदि दुःखो से मुक्त होना चाहता है तो इन मिथ्यादर्शनादिक विभाव भावो का अभाव करना ही कार्य है; इस कार्य के करने से तेरा परम कल्याण होगा । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ६४ ] (आ) इस जीव का मुख्य कर्तव्य आगम ज्ञान है उसके होने से तत्वो का श्रद्धान होता है, तत्वो का श्रद्धान होने से सयम भाव होता है और उस आगम से आत्मज्ञान की भी प्राप्ति होती है तब सहज ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । धर्म के अनेक अग हैं उनमे ध्यान बिना उससे ऊँचा और धर्म का अग नही है इसलिए जिस तिस प्रकार आगम अभ्यास करना योग्य है इसके अभ्यास मे प्रवर्ती, तुम्हारा कल्याण होगा । [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २० ] (इ) हे भव्य । तू यह मान कि 'मेरे अनादि से एक-एक समय करके ससार रोग पाया जाता है उसके नाश का उपाय ( अपने त्रिकाली के आश्रय से) मुझे करना" इस विचार से तेरा कल्याण होगा । (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ४४ ) छूटकर सिद्धपद प्राप्त करने का बिलम्ब मत कर । यह उपाय (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ७५) ( उ ) अन्य सब मत मिथ्यादर्शनादिक के पोषक हैं तो त्याज्य हैं । सच्चे जिनधर्म का स्वरूप जानकर उसमे प्रवर्तन करने से तुम्हारा कल्याण होगा । ( मोक्षमार्ग प्रकाशक १६७) (ऊ) इसलिए बहुत कहने से क्या ? सर्वथा प्रकार कुदेव कुगुरुकुधर्म का त्यागी होना योग्य है वर्तमान मे ( दिगम्बर धर्म मे भी ) इनकी प्रवृत्ति विशेष पाई जाती है। इसलिए उसे जानकर मिथ्यात्व भाव को छोडकर आना कल्याण करो । (ई) हे भव्य । तू ससार से हम जो उपाय कहते है वह कर, करने से तेरा कल्याण होगा । (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ १६२ ) (ए) सर्व प्रकार के मिथ्यात्व भाव को छोड़कर सम्यग्दृष्टि होना
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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