SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ई) मिथ्यादष्टि ससारी जीव द्वारा किये गये उपाय झूठे जानना। तो सच्चा उपाय क्या है ? (१) जब इच्छा दूर हो जावे और (२) सर्व विषयो का युगपत् ग्रहण बना रहे तब यह दुख मिटे। सो इच्छा तो मोह जाने पर मिटे और सब का युगपत ग्रहण केवलज्ञान होने पर हो। इनका उपाय सम्यग्दर्शनादिक है और वही सच्चा उपाय जानना। (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५०) (उ) सज्ञी पचेन्द्रिय कदाचित् तत्व निश्चय करने का उपाय विचारे, वहाँ अभाग्य से कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र का निमित्त बने तो अतत्व श्रद्धान पुष्ट हो जाता है। (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५१) (अ) कदाचित सुदेव-सुगुरु-सुशास्त्र का भी निमित्त बन जाये तो वहाँ उनके निश्चय उपदेश का तो श्रद्धान नहीं करता, व्यवहार श्रद्धान से अतत्व श्रद्वानी ही बना रहता है। (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५१) (ए) अज्ञानी जीव पर पदार्थों को अपनी इच्छानुसार परिणमाना चाहता है वह बन नही सकता, क्योकि प्रत्येक वस्तु अपनी-अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती है किसी के परिणमाये से परिणमती नहीं। (ऐ) मिथ्यादृष्टि होकर पदार्थो को अन्यथा माने, अन्यथा परिणमित कराना चाहे तो आप ही दुखी होता है। उन्हे यथार्थ मानना और यह परिणमित कराने से अन्यथा परिणमित नही होगे ऐसा मानना, सो ही दुख दूर होने का उपाय है । भ्रमजनित दु ख का उपाय भ्रम दूर करना ही है सो भ्रम दूर होने पर सम्यक् श्रद्धान होता है वही सत्य उपाय जानना। (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५२) (ओ) आशारूपी गडढा प्रत्येक अज्ञानी प्राणी मे पाया जाता है । विषयो से इच्छापूर्ण होती नही । इसका अभिप्राय तो सर्व कषायो का सर्व प्रयोजन सिद्ध करने का है, वह हो तो वह सुखी हो, परन्तु वह कदापि नही हो सकता है इसलिए अभिप्राय मे सर्वदा दुखी ही रहता
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy