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________________ (५) पृष्ठ १०२ १०२ विषय २२ सम्यक्त्व बीज, सम्यक मति-श्रुतज्ञान है २३. स्वभाव क्या है ? २४. उपादान कारण के आधीन कार्य होता है २५ बन्ध कारण के प्रतिपक्षी का प्रमाण २६ सयत के कितने गुणस्थान हैं ? २७ त्रण मूढता २८ तत्वज्ञान से परम श्रेय होता है (अ) द्वादशाग का नाम आत्मा है २६ क्या सम्यग्दर्शन सयम का अश है ? १०२ १०२ १०३ १०७ १११ प्रकरण तीसरा १. सम्यक्त्व की व्याख्या ११४ २ सम्यक्त्व की उत्पत्ति ही मोक्ष का कारण है ११४ ३. सम्यक्त्व का प्रतिपक्षी मिथ्यात्व भाव है ११४ ४ ४ से १४वें गुणस्थान तक सम्यक्त्व समान है ११४ ५. सम्यक्त्व गुणी भूत श्रद्धा आत्मा स्वरूप की प्राप्ति ११४ ६. क्षायिक की अपेक्षा क्षायोपशमिक सम्यक्त्व सुलभ है ११४ ७. मिथ्यात्व आदि जीवत्व नही है, मगल तो जीव ही है ११४ ८ सम्यक्त्व प्राप्त करने वालो ने सन्मार्ग ग्रहण किया है। है. सम्यक्त्व का फल निश्चयचारित्र है और निश्चयचारित्र का फल केवलज्ञान-सिद्धदशा है । १० मिथ्यात्व अनादि है इसलिए वह नित्य नही होता। ११५ ११ सम्यग्दृष्टि को श्रद्धा होती है अज्ञानी को श्रद्धा नही होती है ११५ १२ सम्यकादृष्टि अबन्धक है १३ द्रव्यानुयोग और करणानुयोग का समन्वय १४. श्री धवला मे अबन्ध का कथन क्या किया है ? ११६ ११६ meena Founder: Astrology & Athrishta
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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