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________________ ( ६७ ) (इ) जीव का जैसा आशय हो उसके अनुसार जगत मे कार्य न वनता हो तो वह आशय अज्ञान है । [ समयसार गाथा २५४ से २५६ तक ] (ई) आठ प्रकार के ज्ञानो मे मति, श्रुति तथा अवधि ये तीन मिथ्यात्व के उदय के वश ( ६ द्रव्य, सात तत्व, निश्चय व्यवहार, निमित्तनैमित्तिक, व्याप्य - व्यापक आदि मे ) विपरीताभिनिवेश रूप अज्ञान होता है । [ वृहत द्रव्यसंग्रह गा० ५ पृष्ठ १४ व १५ से) ( उ ) मिध्यादर्शन ही के निमित्त से क्षयोपशमरूप ज्ञान है वह अज्ञान हो रहा है । उससे यथार्थ वस्तु स्वरूप का जानना नही होता अन्यथा जानना होता है । [ मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ४६ ] (ऊ) तत्व ज्ञान के अभाव से ज्ञान को अज्ञान कहते हैं । [ मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ८८ ] प्रश्न --- अज्ञान क्या है सीधे-सादे शब्दों में बताओ ? उत्तर- (१) आत्मा का कार्य ज्ञप्ति क्रिया है इसके बदले यह मानना कि मैं परजीवो को बचा सकता हूँ, मार जिला सकता हूँ । सुबह से लेकर चौबीस घण्टे जो रूपी पुद्गल का कार्य है, मै इसे करता हूँ आदि सब मान्यता अज्ञान है । (२) स्वय है आत्मा इसके बदले अपने को देव, नारकी, इन्द्रियादि वाला मानना यह अज्ञान है । (३) ज्ञान ज्ञान से आता है उसके बदले ज्ञेय से आता है यह सब मान्यता अज्ञान है । [ देखो समयसार गा० २७० ] ५. निश्चय सम्यक्त्व ( अ ) मिथ्या मति ग्रन्थि भेदि, जगी निर्मल ज्योति । जोग सो अतीत सो, तो निचे प्रमानिये । अर्थ - मिथ्यात्व का नाश होने से मन, वचन, काय के अगोचर
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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