________________ ( 317 ) कर्मों का पूर्णरूप से छूटना-सो मोक्ष है-ऐसा जिनेन्द्र देव ने वर्णन 'किया है // 18 // प्रश्न १६-पुण्य और पाप प्रकृतियां कौन-कौन सी है? उत्तर-साता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम, शुभ गोत्र और तीर्थर कर आदि पुण्य प्रकृतियाँ है। अन्य शेष पाप प्रकृतियां हैं-ऐसा परस भागम मे कहा है // 16 // प्रश्न २०-उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य किसमे होते हैं ? उत्तर-मनुष्य पर्याय नष्ट होती है, देव पर्याय उत्पन्न होती है तथा जीव वही का वही रहता है। इस प्रकार सर्व द्रव्यो के उत्पादव्यय-ध्रौव्य होते हैं // 20 // प्रश्न २१-वस्तु मे उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य किस अपेक्षा से है ? उत्तर-(१) पर्यायनय से वस्तु मे उत्पाद-व्यय होते है / (2) द्रव्य दृष्टि से वस्तु को ध्रीव्य जानना चाहिए-ऐसा सर्वज्ञ देव द्वारा कहा गया है // 21 // प्रश्न २२-सुखी होने के लिये क्या करना चाहिए? उत्तर-यदि कर्मों का नाश चाहते हो तो परमागम के ज्ञाता होकर स्वय मे स्थित रहकर और मन को स्थिर करके राग-द्वेष को छोडना चाहिये // 22 // प्रश्न २३--सच्चे सुख को कौन प्राप्त होता है ? उत्तर-जो आत्मा विषयो मे लगे हुये मन को रोककर, अपने आत्मा को अपने द्वारा ध्याता है-वह आत्मा वास्तव मे सच्चे सुख को प्राप्त करता है // 23 // प्रश्न २४-कैसे साधुओ को नमस्कार करना चाहिये ? उत्तर-जीवादि को सम्यक प्रकार से जानकर जिन्होने उन जीवादि का यथार्थ वर्णन किया है। जो मोहरूपी हाथी के लिये सिंह समान हैं-उन साधुओ को नमस्कार करना चाहिये // 24 / / प्रश्न २५-ये गाथायें क्यो और किसके निमित्त रची हैं ?