________________ ( 303 ) प्रश्न ७-पुण्यबन्ध को अच्छा मानने रूप खोटी मान्यता को आपने बन्धतत्त्व सम्बन्धी जोव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया परन्तु पुण्यबन्ध को अच्छा, ऐसा तो ज्ञानी भी कहते सुने देखे जाते हैं। तो क्या ज्ञानियो को भी बन्धतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्या दर्शनादि होते हैं ? उत्तर-ज्ञानियो को विलकुल नहीं होते है। (1) क्योकि जिनजिनवर और जिनवर वृषभो ने पुण्यबध को अच्छा मानने रूप खोटी मान्यता को बधतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया है परन्तु ऐसे कथन को नही कहा है। (2) ज्ञानी जो बनते है वे बधतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव कर के ही बनते हैं। (3) ज्ञानियो को हेयशेय-उपादेय का ज्ञान वर्तता है। (4) पुण्यबन्ध अच्छा है, ऐसे ज्ञानी के कथन को आगम मे उपचरित सद्भूत व्यवहार कहा है। संवरतत्त्व प्रश्न १-अज्ञानी संवरतत्त्व के विषय में कैसा मानता है ? उत्तर-वीतराग-विज्ञानतारूप निज आत्मा के आगम से सम्यक-- दर्शन-ज्ञान वैराग्य हितकारी है, परन्तु अज्ञानी निश्चय सम्यकदर्शन ज्ञान वैराग्य को कष्टदाता मानता है। प्रश्न २-निश्चय सम्यकदर्शन-ज्ञान वैराग्य को कष्टदाता मानने रूप खोटी मान्यता को छहढाला की प्रथम नाल में क्या बताया है ? उत्तर-"मोह महामद पियो अनादि" मोहरूपी महामदिरा पान बताया है।