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________________ ( 300 ) अभाव होकर सम्यकदर्शनादि की प्राप्ति होवे यह उपाय छहढाला को दूसरी ढाल मे बताया गया है / प्रश्न ७-अहिंसा पुण्यास्रव उपादेय है-ऐसी मान्यता को आपने आलवतत्त्व सम्बन्धी जीव को भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया परन्तु, अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय है ऐसा ज्ञानी भी कहते सुने देखे जाते हैं / तो क्या ज्ञानियो को भी आत्रवतत्त्व सम्बन्धी जीव को भूलरूप अगृहीत गृहीत मिथ्यादर्शनादि होते हैं ? उत्तर-ज्ञानियो को बिलकुल नही होते है। (1) क्योकि जिनजिनवर और जिनवर वृपभो ने अहिंसादि पुण्यास्रव तत्व उपादेय है, ऐसी खोटी मान्यता को आस्रवतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत गृहीत मिथ्यादर्शनादिक कहा है, परन्तु ऐसे कथन को नहीं कहा है / (2) ज्ञानी जो बनते हैं वे आस्रव तत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूफ अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव कर ही के बनते हैं। (3) ज्ञानियो को हेय-ज्ञेय उपादेय का ज्ञान वर्तता है। (4) अहिंसादि पुण्यात्रव उपादेय है ऐसे ज्ञानी के कथन को आगम मे उपचरिता सदभूत व्यवहारनय कहा। सदालन उपादेय है पादेय का ज्ञान कर ही के बनते / भलरूफ बंधतत्त्व प्रश्न १-अज्ञानी बंधत्व के विषय में कैसा मानता है ? उत्तर-पुण्य-पाप दोनो बधरूप होते हुये भी पुण्य बघ को अच्छाए मानता है। - प्रश्न २-पुण्यवन्ध को अच्छा मानने रूप खोटी मान्यता को छहढ़ाला की प्रथम ढाल मे क्या बताया है ?
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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