________________ ( 264 ) प्रश्न ३८-शास्त्रो में अनिवत्तिकरण की परिभाषा क्या बताई उत्तर-जिसमे समान समयवर्ती जीवो के परिणाम समान ही होते हैं, निवृत्ति अर्थात परस्पर भेद उससे रहित होते है, जैसे-उम करण के पहले समय मे सर्व जीवो के परिणाम परस्पर समान ही होते हैं, उसी प्रकार द्वितीयादि समयो मे परस्पर समानता जानना। तथा प्रथमादि समय वालो से द्वितीयादि समय वालो के अनन्तगुणी विशुद्धता सहित होते है। इस प्रकार अनिवृत्ति करण जानना / प्रश्न ३६-अनिवृत्तिकरण का स्वरूप समझ में नहीं आया, कृपया दृष्टान्त देकर स्पष्ट कीजिए ? उत्तर-जैसे-पाँचवी क्लास के सव विद्यार्थी समान ही होशियार हो, वैसे ही एक साथ अनिवृत्तिकरण माडने वाले जितने जीव हो उन सवके परिणाम समान हो अर्थात जिनके परिणामो मे कोई भेद ना हो उसे अनिवृत्तिकरण कहते हैं / प्रश्न ४०-अघःकरण आदि तीनो भाव कैसे हैं ? उत्तर-गुभभावरूप हैं जिसके अभाव होते ही धर्म की प्राप्ति होती है और फिर क्रम से मोक्ष लक्ष्मी का नाथ बन जाता है। प्रश्न ४१-श्री कार्तिकेय स्वामी ने सम्यग्दष्टि की धर्मअनुप्रेक्षा के विषय में क्या बताया है (2) सम्यग्दष्टि जीव वस्तु स्वरुप का कैसा चिन्तन करता है ? (3) उसमें मोक्षमार्ग का सम्यक् पुरुषार्थ भी किस प्रकार आ जाता है ? उत्तर-यहाँ मूलगाथाये लेकर इनका विवेचन किया जा रहा है। जं जस्स जम्मि देसे जेण विहाणेण जम्मि कालम्मि / णादं जिणेण पियवं जम्मं वा आहव मरण वा // 32 // तं तस्स तम्मि देसे तेण विहाणेण तम्मि कालम्मि। को सक्कइ चालेदु इंदो वा अह जिणिदो वा॥३२२॥ अर्थ-जिस जीव को जिस देश मे जिस काल मे जिस विधि से