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________________ ( 285 ) नाम व्यवहार श्रावकपना कहा जाता है / (2) जहाँ दो चौकडो कषाय के अभाव रूप देशचारित्र को यथार्थ का नाम निश्चय श्रावकपना कहा हो, उसकी अपेक्षा वहाँ बारह अणुव्रतादि के विकल्पो को उपचार का नाम व्यवहार श्रावकपना कहा जाता है। (3) जहां वारह अणुव्रतादि के विकल्पो को यथार्थ का नाम निश्चय श्रावकपना कहा हो, उसकी अपेक्षा वहाँ बारह अणुव्रतादिरूप शरीर की क्रिया को उपचार का नाम व्यवहार श्रावकपना कहा जाता है। प्रश्न २८-तीन प्रकार के निश्चय-व्यवहार को मुनिपने पर लगाकर बताओ? उत्तर-(१) जहाँ श्रद्धा व चारित्र गुणरूप अभेद त्रिकाली आत्मा को यथार्थ का नाम निश्चय मुनिपना कहा हो, वहाँ उसकी अपेक्षा तीन चौकडी कषाय के अभावरूप सकलचारित्र को उपचार का नाम व्यवहार मुनिपना कहा जाता है। (2) जहाँ तीन चौकडी कपाय के अभावरूप सकलचारित्र को यथार्थ का नाम निश्चय मुनिपना कहा हो, उसकी अपेक्षा वहाँ 28 मूलगुणादि के विकल्पो को उपचार का नाम व्यवहार मुनिपना कहा जाता है / (3) जहाँ 28 मूलगुणादि के विकल्पो को यथार्थ का नाम निश्चय मुनिपना कहा हो, उसकी अपेक्षा वहाँ 28 मूलगुणादिरूप शरीर की क्रिया को उपचार का नाम व्यवहार मुनिपना कहा जाता है। प्रश्न २९-तीन प्रकार के निश्चय-व्यवहार को ईर्या समिति पर लगाकर बतायो ? उत्तर-२८ प्रश्नोत्तर के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न ३०-तीन प्रकार के निश्चय-व्यवहार को उत्तम क्षमा पर लगाकर बताओ? उत्तर-२८ प्रश्नोत्तर के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न ३१-तीन प्रकार के निश्चय-व्यवहार को मनोगुप्ति पर लगाकर बताओ?
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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