________________ ( 283 ) उपचार भी सम्भव नहीं है / वहाँ प्रवर्तने से क्या भला होगा? नरकादि प्राप्त करेगा। इसलिये ऐसा करना तो निविचारपना है। (3) तथा व्रतादिरूप परिणति को मिटाकर केवल वीतराग उदासीन भावरूप होना बने तो अच्छा ही है। (4) वह निचली दशा में हो नहीं सकता। (5) इसलिये व्रतादिक साधन छोड़कर स्वच्छन्द होना योग्य नहीं है। (6) इस प्रकार श्रद्धान में निश्चय को और प्रवृत्ति में व्यवहार को उपादेय मानना-वह भी मिथ्याभाव ही है।" इस वाक्य को मुनिपने पर लगाफर समझाइये? उत्तर-(१)पडित जी उभयाभासी मान्यता वाले शिष्य से पूछते हैं कि 28 मूलगुणादि रूप प्रवृत्ति को छोड़कर तू क्या करेगा ? (2) और यदि 28 मूलगुणादि रूप शुभभावो को छोडकर हिंसादि अशुभभावो मे प्रवर्तेगा तो वहाँ तो मुनिपने का उपचार भी सम्भव न हो सकेगा और अशुभभावो मे प्रवर्तने से तेरा क्या भला होगा ? नरकादि के दुखो को प्राप्त करेगा। इसलिये 28 मूलगुणादि के शुभभावो को छोडकर अशुभभावो मे प्रवर्तना तो निविचारीपना है। (3) तथा 28 मूलगुणादिक व्यवहार मुनिपने की परिणति को मिटाकर केवल यथाख्यात चारित्र वीतराग शुद्धोपयोग भावरूप होना बने तो अच्छा है। (4) यथाख्यात चारित्र वीतराग शुद्धोपयोग दशा निचली दशा में नही हो सकती है। (5) इसलिये 28 मूलगुणादिक के शुभभावो को छोडकर स्वच्छन्द-पापी होना योग्य नही है। (६)इस प्रकार श्रद्धान मे निश्चय को और प्रवृत्ति मे व्यवहार को उपादेय मानना---वह भी मिथ्याभाव ही है। प्रश्न १६-श्रावकपने पर प्रश्नोतर 1 से 18 तक के अनुसार बनाकर लिखो और स्पष्ट समझाओ ? प्रश्न २०-सम्यग्दर्शन पर प्रश्नोत्तर 1 से 18 तक के अनुसार बनाकर लिखो और स्पष्ट समझाओ? प्रश्न २१-ईर्या समिति पर प्रश्नोत्तर 1 से 18 तक के अनुसार बनाकर लिखो और स्पष्ट समझाओ?