________________ ( 275 ) जागता है वह अपने कार्य में सोता है। (4) इसलिये व्यवहारनय का श्रद्धान छोड़कर निश्चयनय का श्रद्धान करना योग्य है।" इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये? उत्तर-(१) सकलचारित्र शुद्धिरूप निश्चय मुनिपने को अगीकार करने और 28 मूलगुणादि अशुद्धिरूप व्यवहार मुनिपने के त्याग के विषय मे मोक्षपाहुड गाथा 31 मे भगवान कुन्दकुन्दाचार्य ने क्या कहा है ? (2) जो 28 मूलगुणादिरूप व्यवहार मुनिपने की श्रद्धा छोडकर सकलचारित्र रूप निश्चय मुनिपने की श्रद्धा करता है वह योगी अपने आत्मकार्य मे जागता है। (3) तथा जो 28 मूलगुणादिरूप व्यवहार मुनिपने मे जागता है, इसी को सच्चा मुनिपना मानता है-वह अपने आत्मकायं मे सोता है। (4) इसलिए 28 मूलगुणादिरूप व्यवहार मुनिपने का श्रद्धान छोडकर सकलचारित्र रूप निश्चय मुनिपने का श्रद्धान करना योग्य है, क्योकि यथार्थ मे सकलचारित्ररूप शुद्धोपयोग ही मुनिपना है। प्रश्न 10-"(1) व्यवहारनय स्वद्रव्य-परद्रव्य को व उनके भावो को व कारण-कार्याविक को किसी को किसी में मिलाकर निरूपण करता है सो ऐसे ही श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है, इसलिये उसफा त्याग करना। (2) निश्चयनय उन्हीं को यथावत् निरूपण करता है, किसी को किसी में नहीं मिलाता है सो ऐसे ही श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है, इसलिये उसका श्रद्धान करना"-इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये? उत्तर-(१) 28 मूलगुणादि रूप व्यवहार मुनिपने का श्रद्धान छोडकर सकलचारित्ररूप निश्चय मुनिपने का श्रद्धान क्यो करना योग्य है ? इस प्रश्न का उत्तर इस वाक्य मे है / सकलचारित्ररूप निश्चय मुनिपना-यह स्वद्रव्य का भाव है और 28 मूलगुणादि प्रवृत्ति रूप व्यवहार मुनिपना-यह परद्रव्य का भाव है। व्यवहारनय सकलचारित्ररूप स्वद्रव्य के भाव को और 28 मूलगुणादि रूप परद्रव्य के