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सो योग है। योग के १५ भेद निमित्त को अपेक्षा से है । आत्मा मे योग नाम का गुण है। इसमें शुद्ध और अशुद्ध दो प्रकार का परिणमन है ।
प्रश्न ३० - क्या सम्यग्दर्शन होते ही संसार के पांच कारणों का अभाव हो जाता है ?
उत्तर- (१) जैसे किसी को EEEEE) रुपया देना है । यह यदि ६००००) हजार रुपया दे दे | तो ६६६६) रुपया बाकी रहता है, ६०००० ) हजार दे दिया तो बाकी भ हो जाता है। उसी प्रकार प्रकार गिध्यात्व का अभाव होना ६००००) देने के बराबर है । जहाँ मिय्यात्व का अभाव हो गया वहाँ अविरति, प्रमाद, कपाय और योग का अभाव अल्पकाल में हो ही जाता है इसलिए सम्यक्त्व होते ही सगार के पाँच कारणों का अभाव हो जाता है ।
(२) अनन्त समार का कारण तो मिध्यात्व है । उनका अभाव हो जाने पर अन्य वध की गणना कौन करता है ? जैसे वृक्ष को जड़ कट जाने पर फिर हरे पते की अवधि कितनी रहती है ? इसलिए सम्यग्दर्शन होने पर जो कुछ कमी होती है वह सहज मिट ही जाती है । अत. मियात्व का अभाव होते ही संसार के पांच कारणो का अभाव हो जाता है ।
प्रश्न ३१-भव अपेक्षा से आत्मा असंयुक्त, संकल्प-विकल्प जालो से रहित है। इसका क्या रहस्य है, जरा प्रान्त देकर समझाइए ?
उत्तर - जैसे - जलका अग्नि जिसका निमित्त है ऐसी उप्णता के साथ संयुक्तरूप तप्तारूप अवस्था से अनुभव करने पर (जल का ) उष्णता स्प सयुक्तता भूतार्थ है-सत्यार्थ है । उनी समय एकान्त शीतलतास्प जल स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर (उष्णता के साथ) सयुक्तता अभूतार्थ है --असत्यार्थ है, उसी प्रकार आत्मा का कर्म जिसका निमित्त है ऐसे मोह के साथ सयुक्तारूप अवस्था से अनु