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स्वपर की एकत्व बुद्धि; (३) शुभभावों से धर्म होता है ऐसी बुद्धि, (४) ज्ञेय से ज्ञान होना मानना, (५) शुभाशुभ भावो का ग्रहणत्यागरूप बुद्धि, (६) अपने को नरकादि रूप मानने की बुद्धि, (७) पर मे इष्ट-अनिष्ट की बुद्धि; (८) मनुष्य-तिर्यचो के प्रति करुणाभाव आदि मान्यताये, मिथ्यादर्शन के चिन्ह हैं।
प्रश्न २५-मिथ्यात्व की पहिचान क्यों बताई है ?
उत्तर-मिथ्यात्व का स्वरूप जानकर, भव्य जीवो को मिथ्यात्व छोड देना चाहिए क्योकि सब प्रकार के वध का मूल कारण मिथ्यात्व हैं। मिथ्यात्व नष्ट हुए बिना अविरति आदि दूर नहीं होते, इसलिए प्रथम मिथ्यात्व को छोडना चाहिए।
प्रश्न २६-अविरति किसे कहते हैं ?
उत्तर-(१) चारित्र सम्बन्धी निविकार स्वसम्वेदन से विपरीत मणवत परिणामरूप विकार को अविरति कहते है। (२) पांच इन्द्रिय और मन के विषय एव पाँच स्थावर और त्रस की हिंसा, इन १२ प्रकार के त्याग रूप भाव का न होना, सो १२ प्रकार की अविरति है। अविरति को असयम भी कहते हैं।
प्रश्न २७-प्रभाव किसे कहते हैं ? उत्तर-उत्तम क्षमादि दश धर्मों में उत्साह न रखना, यह प्रमाद
प्रश्न २८-पाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-(१) मिथ्यात्व तथा क्रोधादिरूप आत्मा की अशुद्ध परिपति को कषाय कहते हैं। (२) कष-ससार । आय =लाभ । जिस भाव से ससार का लाभ हो वह कषाय है अर्थात जो आत्मा को दुख दे, उसे कषाय कहते है। कषाय २५ होती है।
प्रश्न २६-योग किसे कहते हैं ?
उत्तर-(१) मन-वचन-काय के निमित से आत्म प्रदेशो के परिस्पदन को योग कहते है । (२) आत्मा के प्रदेशो का सकम्प होना