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मसार के कारणो का अभाव होकर सिद्धदशा की प्राप्ति हो।
प्रश्न २०-संसार के पाँच कारण कौन-कौन से हैं, जिनसे संसार परिभ्रमण होता है ?
उत्तर-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कपाय और योग है जो ससार परिभ्रमण के कारण हैं।
प्रश्न २१-मिथ्यात्व क्या है ?
उत्तर-(१) मिथ्यात्व-अनादि से एक-एक समय करके अज्ञानी की मिथ्यात्व दशा है। सम्पूर्ण दुखो का मूलकारण मिथ्यात्व ही है। जीव के जैसा श्रद्धान है, वैसा पदार्थ स्वरूप न हो और जैसा पदार्थ का स्वरूप ना हो वैसा यह माने यह मिथ्यादर्शन है। अज्ञानी जीव स्व और शरीर को एक मानता है किसी समय अपने को पतला, मोटा, बुखार वाला, कडा, नरम, गोरा, आदि मानता है यह मिथ्यादशन है।
प्रश्न २२-मिथ्यादर्शन को समझाने के लिए आचार्यकल्प पं० टोडरमल ने क्या दृष्टान्त और सिद्धान्त समझाया है ?
अर्थ- [अ] (१) जैसे-पागल को किसी ने वस्त्र पहिना दिया। वह पागल उस वस्त्र को अपना अग जानकर अपने को और वस्त्र को एक मानता है, उसी प्रकार इस जीव को कर्मोदय ने शरीर सम्बन्ध कराया। यह जीव इस शरीर को अपना अग जानकर अपने को और शरीर को एक मानता है। (२) जैसे-वह वस्त्र पहिनाने वाले के आधीन होने से कभी वह फाडता है, कभी जोडता है, कभी खोसता है, कभी नया पहिनाता है इत्यादि चरित्र करता है, उसी प्रकार वह शरीर के कर्म के आधीन (निमित्त से) कभी कृष होता है। कभी स्थूल होता है, कभी नष्ट होता है, कभी नवीन उत्पन्न होता है इत्यादि चरित्र होते हैं। (३) जैसे-वह पागल उसे अपने आधीन मानता है, उसकी पराधीन क्रिया होती है, उससे वह महा खेदखिन्न