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और ससार मे ही भ्रमण होगा।........."ऐसे समय मे मोक्षमार्ग मे प्रवर्तन नही करे, तो किचित् विशुद्धता पाकर फिर तीव्र उदय आने पर निगोदादि पर्याय को प्राप्त करेगा, इसलिए अवसर चूकना योग्य नही है। अब सर्व प्रकार से अवसर आया है ऐसा अवसर प्राप्त करना कठिन है इसलिए वर्तमान मे श्री गुरु दयाल होकर मोक्षमार्ग का उपदेश दे रहे है, उसमे भव्य जीवो को प्रवृत्ति करना योग्य है।" [मोक्षमार्ग प्रकाशक]
प्रश्न १८-भाव अपेक्षा से आत्मा अविशेष -एक है। इसका क्या रहस्य है, दृष्टान्त देकर समझाइये ?
उत्तर- जैसे-सोने का चिकनापन, पीलापन, भारीपन इत्यादि गुण रूप भेदो से अनुभव करने पर विशेपता भूतार्थ है-सत्याथ है। उसी समय जिसमे सर्व विशेष विलय हो गये हैं ऐसे स्वर्ण स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर विशेषता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है। उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान-दर्शन आदि गुणरूप भेदो से अनुभव करने पर विशेषता भूतार्थ है-सत्यार्थ है उसी समय जिसमे सब विशेष विलय हो गये हैं ऐसे आत्म स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर विशेषता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है। तात्पर्य यह है कि आत्मा मे गुण भेद सज्ञा, सख्या प्रयोजन आदि की अपेक्षा से है, प्रदेश भेद नहीं है। आत्मा मे गुणभेद होने पर भी तू अभेद भगवान ज्ञायक स्वभावी है। ऐसा जानकर अभेद स्वभावी का आश्रय ले तो मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग का अभाव होकर शान्ति की प्राप्ति हो।
प्रश्न १६-क्या गुणभेद होने पर भी संसार के पाँच कारणो का अभाव हो सकता है और उसका फल क्या है ?
उत्तर- हाँ, हो सकता है क्योकि गुणभेद अभूतार्थ है और भगवान मात्मा अभेद भूतार्थ है। भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने चौथे बोल मे मही बात समझाई है कि तू अभेद स्वभाव की दृष्टि करे तो