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तक सम्यग्दर्शन नही है; तब तक चार गति रूप निगोद है और सम्यग्दर्शन होते ही चार गति के अभाव रूप मोक्ष है। क्योंकि चार गतियो के भाव का फल अन्त मे निगोद है और अगति रूप स्वभाव के लक्ष्य से मोक्ष है।
प्रश्न ११-मोक्ष कितने प्रकार का है ?
उत्तर-पाँच प्रकार का है-(१) शक्तिरूप मोक्ष, (२) दष्टि मोक्ष, (३) मोहमुक्त मोक्ष, (४) जीवनमुक्त मोक्ष, (५) विदेह मोक्ष । याद रखना चाहिए, (अ) शक्तिरूप मोक्ष के आश्रय से ही दृष्टि मोक्ष की प्राप्ति होती है। (आ) दृष्टि मोक्ष प्राप्त होने पर मोह मुक्त मोक्ष की प्राप्ति होती है। (इ) मोहमुक्त मोक्ष प्राप्त होने पर ही जीवन मुक्त मोक्ष की प्राप्ति होती है (ई) जीवन मुक्त मोक्ष प्राप्त होने पर ही विदेह मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही अनादिअनन्त नियम है।
प्रश्न १२-काल अपेक्षा से आत्मा नियत, अनादिअनन्त है। इसका रहस्य क्या है, दृष्टान्त देकर समझाइये ?
उत्तर-जैसे-समुद्र का वृद्धि-हानि रूप अवस्था मे अनुभव करने पर अनियतता भूतार्थ-सत्यार्थ है। उसी समय नित्य स्थिर समुद्र स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अनियतता अभूतार्थ हैअसत्यार्थ है, उसी प्रकार आत्मा का वृद्धि-हानि रूप पर्याय भेदो से अनुभव करने पर अनियतता भूतार्थ है-सत्यार्थ है उसी समय नित्य स्थिर आत्म स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अनियतता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है। तात्पर्य यह है कि आत्मा को पर्याय में हानि-वृद्धि होने पर भी हानि-वृद्धि रहित एकरूप स्वभाव पृथक पडा है। उसकी ओर दृष्टि करे, तो पच परावर्तन रूप ससार का अभाव हो जाता है।
प्रश्न १३-क्या पर्याय में हानि-वृद्धि होने पर भी पंच परावर्तन रूप संसार का अभाव हो सकता है और उसका फल क्या है ?