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( ८० ) सर्व पर्याय भेदो से किंचित् मात्र भी भेदरूप न होने वाले एक मिट्टी के स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अन्य च अभूतार्थ है-असत्यार्थ है, उसी प्रकार आत्मा का नारक आदि पर्यायो के अन्य-अन्य रूप से अन्यत्व भूतार्य है - सत्यार्थ है। उसी समय सर्व पर्याय भेदो से किचित मात्र भेद रूप न होने वाले एक चैतन्याकार असख्यात प्रदेशी आत्म स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अन्यत्व अभूतार्थ है-असत्यार्थ है। तात्पर्य यह है कि गति सम्बन्धी गरीर होने पर, गरीर सम्बन्धी नाम कर्मादि का उदयादि होने पर और गति सम्बन्धी भाव होने पर भी गति रहित स्वभाव का एक रूप पटा है। जरा उसकी ओर दृष्टि करते हो चारो गतियो का अभाव होकर पचम गति को प्राप्ति होती है।
प्रश्न :-क्या चारो गतियो का शरीर, कर्मादि और भावकर्म होने पर भी आत्मा का अनुभव हो सकता है और उसका फल क्या
उत्तर-हाँ हो सकता है, क्योकि गति सम्बन्धी शरीर, कर्म का उदय और गति सम्बन्धी भाव अभूताथ है और भगवान आत्मा का गति रहित स्वभाव भूतार्थ है। भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने यही बात दूसरे वोल मे समझायी है और इसका फल चारो गतियो के अभाव रूप मोक्ष की प्राप्ति वताया है। इसलिये शरीर, कर्म और शरीर सम्बन्धी भावो से रहित अगति स्वभाव पर दृष्टि करके पात्र जीवो को अपना कल्याण तुरन्त कर लेना चाहिए।
प्रश्न १०-क्या आत्मा का अनुभव होते ही चारो गतियो के अभाव रूप मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है ?
उत्तर-जैसे-लडकी का रिश्ता पक्का करने पर सगाई, विवाह न होने पर भी विवाह हो गया, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन होने पर एक दो भव होने पर भी ज्ञानी की दृष्टि अगति स्वभाव पर होने से चारो गति के अभावरूप मोक्ष की प्राप्ति कही जाती है। वास्तव मे जब