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परभावो से भिन्न है । इसका क्या रहस्य है, दृष्टान्त देकर समझाइये ?
उत्तर - जैसे - कमलिनी का पत्र जल मे डूबा हुआ है । उसका जल से स्पर्शित रूप अवस्था से अनुभव किये जाने पर जल से स्पर्श रूप अवस्था भूतार्थ है-सत्यार्थ है । उसी समय कमलिनी पत्र के स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर जल से स्पर्श रूप दशा अभूतार्थ है-असत्यार्थ है; उसी प्रकार आत्मा अनादि पुद्गल कर्म से वद्ध-स्पर्श रूप अवस्था से अनुभव किये जाने पर बद्ध- स्पर्शपना भूतार्थ है - सत्यार्थ है । उसी समय पुद्गल से किचित् मात्र भी बद्ध-स्पर्श न होने योग्य आत्म स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर बद्धस्पर्शता अभूतार्थ है -असत्यार्थ है । तात्पर्य यह है कि आत्मा कर्मों से वधा हुआ-स्पर्धा हुआ है उसी समय स्वभाव की अपेक्षा से देखने पर कर्मों से बन्धा और स्पर्शा हुआ नही है ऐसा जानकर अपने स्वभाव की दृष्टि करे, तो आठो कर्मों का अभाव होकर 'स मुक्त एव' वन जाता है ।
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प्रश्न ६ - या आत्मा का कर्मों से सम्वन्ध होते हुए भी आत्मा का अनुभव हो सकता है और उसका क्या फल है ?
उत्तर - हाँ, हो सकता है, क्योकि कर्मों का सम्बन्ध अभूतार्थ है और भगवान आत्मा भूतार्थ है । भगवान अमृत चन्द्राचार्य ने यही बात इसमे बतलायी है और इसका फल ( आत्मा के अनुभव का फल ) आठो कर्मो का अभाव बताया है ।
प्रश्न ७ - सम्यग्दर्शन होते ही आठों कर्मों का अभाव कैसे हो जाता है ?
उत्तर- (१) जीव अज्ञान दशा मे अपने स्वरूप की असावधानी रखना था उसमे मोहनीय कर्म का उदय निमित्त होता था अब अपना अनुभव होने पर अपने स्वरूप की सावधानी रखता है । इससे मोहनीय कर्म का अभाव हो गया । (२) स्वरूप की असावधानी होने से अज्ञानी जीव अपना ज्ञान पर की ओर मोडता था । उसमे ज्ञाना