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और पर भावो से भिन्न है। (२) ओर कैसा है ? (आपूर्णम्) आत्म स्वभाव समस्त रूप से पूर्ण है। (३) और कैसा है ? (आद्यन्त विमुक्त) आदि और अन्त से रहित अर्थात अनादिअनन्त है। (४) और कैसा है ? (एका । एक है। (५) और कैसा है ? (विलीन सकल्प विकल्प जाल) सकल्प और विकल्पो से रहित है।
प्रश्न ३-समयसार गाथा १४ मे इन पांचो बोलो को किस नाम से सम्बोधन किया है ?
उत्तर-'अनबद्ध स्पष्ट अनन्य अरू जो नियत देखे आत्म को। अविशेष अनसयुक्त उसको शुद्धनय तू जान जो ॥१४॥
अर्थ-(१) [अबद्धस्पृप्टम) बन्ध रहित और पर के स्पर्श से रहित । (२) [अनन्यक] अन्य-अन्य पने से रहित है। (३) [नियतम] चलाचल रहित । (४) [अविशेषम्] विशेष रहित अर्थात भेद रहित (५) [असयुक्त] अन्य के सयोग से रहित ऐसा बताया है । ___ प्रश्न ४-दसवें कलश और गा० १४ मे जो पांच-पाँच बोल हैं। वह किस-किस अपेक्षा से है ?
उत्तर-(१) द्रव्य अपेक्षा पर द्रव्य और पर भावो से भिन्न । अवद्धस्पृष्ट अर्थात बन्ध रहित पर के स्पर्श से रहित, ऐसा शुद्धनय है। (२) क्षेत्र अपेक्षा] आपूर्ण अर्थात् समस्त रूप से पूर्ण । अनन्य अर्थात अन्य-अन्य पने से रहित, ऐसा शुद्धनय है। (३) [काल अपेक्षा अनादि अनन्त । नियम अर्थात् चलाचलता रहित, ऐसा शुद्धनय है। (४) [भाव अपेक्षा] एक अर्थात अभेद । अविशेष अर्थात विशेप रहित ऐसा शुद्धनय है (५) [भव अपेक्षा] सकल्प विकल्प जालो से रहित असयुक्त अर्थात् अन्य के सयोग रहित, ऐसा शुद्धनय है। जो भव्यजीव ऐसे पाँच भाव रूप से एक अपनी आत्मा को देखता है। वह मोक्षरूप लक्ष्मी का नाथ वन जाता है।
प्रश्न ५-द्रव्य अपेक्षा से आत्मा अबद्ध-अस्पष्ट, पर द्रव्य और