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तुम्हारा क्या गया ? उसी का गया । सेठजी को यह बात जँच गयी । उनका सर्व समाधान हो गया और आकुलता मिट गयी । इससे सिद्ध हुआ "ज्ञान सर्व समाधान कारक है ।"
रहा ? प्रश्न ५३ - इन छह बोलो से क्या तात्पर्य उत्तर -- शरीर, धन, सुख-दुख अथवा शत्रु-मित्र जन ( यह सब कुछ) जीव के ध्रुव नही है ध्रुव तो ज्ञानात्मक, दर्शनरूप, इन्द्रियो के बिना सबको जानने वाला महापदार्थ, ज्ञय पर्यायो का ग्रहण त्याग न करने से अचल और ज्ञेय पर द्रव्यो का आलम्वन न लेने से निरालम्ब है | इसलिए भगवान आत्मा एक है, एक होने से वह शुद्ध है । शुद्ध होने से ध्रुव है । ध्रुव होने से एक मात्र वही उपलब्ध करने योग्य है । ऐसा श्रद्धान- ज्ञान-अनुभव होना, यह ज्ञान के छह बोलो के जानने का तात्पर्य है । ( प्रवचनसार गा० १६२ से १६३ तक का
सार) |
प्रश्न ५४ - इन छह बोल समझने वाले जीव को कैसे-कैसे भाव उत्पन्न नहीं होते हैं ?
उत्तर - (१) ऐसा क्यो, ( २ ) इससे यह, (३) यह हो, यह ना हो आदि प्रश्न उपस्थित नही होते हैं । इन तीनो बोल का स्पष्टीकरण इसी शास्त्र के दसवें पाठ में देखो ।
"अब हमारा मन अन्यत्र कहीं नहीं लगता " जिस प्रकार अमृत भोजन का स्वाद चखने के बाद देवो का मन अन्य भोजन में नहीं लगता, उसी प्रकार ज्ञानात्मक सौख्य के निधान चैतन्यमात्र चिन्तामणि के अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं लगता । [नियमसार कलश १३० ]