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प्राप्त होते है यह जीव उन सबको अपना जानता है परन्तु ये सभी अपने-अपने आधीन होने से कोई आते, कोई जाते और कोई अनेक अवस्था रूप से परिणमते हैं । क्या यह उसके आधीन है ? वास्तव मे उसके आधीन नही है तो भी अज्ञानी जीव उसे अपने आधीन मान कर खेद खिन्न होता है । ऐसे समय मे सद्गुरु देव ने कहा, तू तो अमूर्तिक प्रदेश का पुज, प्रसिद्ध ज्ञानादि गुणो का धारक, अनादिनिधन, वस्तुस्व है तथा शरीर मूर्तिक पुद्गल द्रव्यो का पिंड, प्रसिद्ध ज्ञानादि गुणो से रहित, नवीन ही जिसका सयोग हुआ है, ऐसे यह शरीरादि पुद्गल जो कि तेरे से पर है। इनसे तेरा सम्बन्ध नही है । इतना सुनते ही सर्व समाधान हो गया अर्थात शान्ति की प्राप्ति हो गई । इसलिए 'ज्ञान सर्व समाधान कारक है' कहा जाता है ।
प्रश्न ५१ - ' ज्ञान सर्व समाधान कारक है' इसको जरा और स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर - अज्ञानी जीव तो रागादि भावो के द्वारा सर्व द्रव्यो को अन्य प्रकार से परिणमाने की इच्छा करता है । किन्तु ये सव द्रव्य जीव की इच्छा के आधीन नही परिणमते इसलिए अज्ञानी को आकुलता होती है । यदि जीव की इच्छानुसार सब ही कार्य हो, अन्यथा न हो तो ही निराकुलता रहे । तव सद्गुरुदेव ने कहा ऐसा तो हो ही नही सकता । क्योकि किसी द्रव्य का परिणमन किसी द्रव्य के आधीन नही है । इसलिए सम्यक् अभिप्राय द्वारा स्व सन्मुख होने से ही रागादि भाव दूर होकर निराकुलता होती है। ऐसा सुनते ही सर्व समाधान हो गए और पर मे कर्ता- भोक्ता की खोटी बुद्धि का अभाव हो गया । इसलिए कहा जाता है "ज्ञान सर्व समाधान कारक
है
?"
प्रश्न ५२ - कोई लौकिक दृष्टान्त समझाइए 'ज्ञान सर्व समाधान कारक है ?'
उत्तर - एक सेठ जी थे उनकी उम्र ८० वर्ष की थी। उनके एक