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एक वस्तु का अन्य वस्तु के साथ समस्त सम्बन्ध ही का निषेध किया गया है। भिन्न-भिन्न वस्तुओ मे कर्ता-कर्म की घटना नही होती, इसलिए ऐसा श्रद्धान करो कि कोई किसी का कर्ता नहीं है। पर द्रव्य पर का अकर्ता ही है।"
प्रश्न ४८-मोक्षमार्ग प्रकाशक मे एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर सकता ऐसा कही कहा है ?
उत्तर- "अनादिनिधन वस्तुयें भिन्न-भिन्न अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती है । कोई किसी के आधीन नहीं है । कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होती। उन्हे परिणमित कराना चाहे, वह कोई उपाय नही है, वह तो मिथ्यादर्शन ही है।"
प्रश्न ४६-'ज्ञान पर का कुछ नहीं कर सकता है इसका रहस्य क्या है ?
उत्तर-हे आत्मा तेरा कार्य ज्ञाता-दृष्टा है। तू पर मे जरा भी हेर-फर नही कर सकता है ऐसा जाने-माने तो उसकी दृष्टि अपने स्वभाव पर होती है वह पर्याय मे भगवान वन जाता है इस प्रकार धर्म की शुरूआत, वृद्धि और पूर्णता की प्राप्ति होती है।।
प्रश्न ५०-'ज्ञान सर्व समाधान कारक है' यह किस प्रकार है ?
उत्तर-जैसे-किसी जगह एक पागल बैठा था। वहाँ अन्य स्थान से आकर मनुष्य, घोडा और धनादिक उतरे, उन सबको वह पागल अपना मानने लगा किन्तु वे सब अपने-अपने आधीन हैं अत. इसमे कोई आवे, कोई जाय और कोई अनेक रूप से परिणमन करता है। इस प्रकार सब की क्रिया अपने-अपने आधीन है तथापि वह पागल उसे अपने आधीन मानकर पागल होता है और उस पागल को किसी भले आदमी ने कहा, तू तो अलग है और यह सब अलग हैं, इनसे तेरा कोई सम्बन्ध नही है। उस पागल के दिमाग मे यह बात आते ही वडा आनन्दित हुआ, उसी प्रकार यह जीव जहाँ शरीर धारण करता है वहाँ किसी अन्य स्थान से आकर पुत्र, घोडा, धनादिक स्वय