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________________ न्धाभावे त (कोई भी इस प्रश्न ४७-आत्मा पर का कुछ नहीं कर सकता, ऐसा कहीं समयसार में लिखा है ? उ.- (१) नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्ध पर द्रव्यात्मतत्वयो। ___ कर्तृ कर्मत्व सम्बन्धाभावे तत्कर्तृता कुतः ॥कलश २०० अर्थ-पर द्रव्य और आत्म तत्व का (कोई भी) सम्बन्ध नही है तब फिर उनमे कर्ता कर्म सम्बन्ध कैसे हो सकता है ? इस प्रकार जहाँ कर्ता-कर्म सम्बन्ध नही है वहाँ आत्मा के परद्रव्य का कर्तृत्व कैसे हो सकता है ? कभी भी नही हो सकता है । (२) कलश १९६ मे "जोअज्ञान अन्धकार से आच्छादित होकरमात्मा को पर का कर्ता मानते हैं, वे चाहे मोक्ष के इच्छुक हो, तो भी लोकिक जनो की तरह उनको भी मोक्ष नही होता।" तथा कलश २०१ मे "जो व्यवहार से मोहित होकर पर द्रव्य का कर्तापना मानते हैं। वह लौकिक जन हो या मुनिजन हो-वह मिथ्यादृष्टि ही है।"(३) समयसार गा० ३०८ से ३११ तक मे बताया है कि "समस्त द्रव्यो के परिणाम जुदे-जुदे हैं सभी द्रव्य अपने-अपने परिणामो के कर्ता हैं निश्चय से वास्तव मे किसी का किसी के साथ कर्ता-कर्म सम्बन्ध नही है इसलिए जोव अपने परिणाम का ही कर्ता है, अपना परिणाम कर्म है। इसी तरह अजीव अपने परिणाम का ही कर्ता है, अपना परिणाम कर्म है। इस प्रकार जीव दूसरे के परिणामो का अकर्ता है। (४) अज्ञानीजन ही व्यवहार विमूढ होने से पर द्रव्य को ऐसा देखते मानते हैं कि "यह मेरा है।" (समयसार गा० ३२४ से ३२७ को टीका से) । (५) इस जगत मे अज्ञानी जीवो का "पर द्रव्य का मैं करता हू" ऐसा पर द्रव्य के कर्तृत्व का महा अहकार रूप अज्ञान अन्धकार जो अत्यन्त दुनिवार है वह अनादि ससार से चला आ रहा है। (समयसार कलश ५५) (६) दो द्रव्य की क्रियाओ को एक द्रव्य करता है। ऐसा मानना जिनेन्द्र भगवान का मत नही है। (समयसार गा० ८५ का भावार्थ) (७) समयसार कलश ५१ से ५५ तक देखो । (८) इस लोक मे
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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