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________________ ( ७० ) स्वभाव नही है। तो याद रखो, हाथ टेडा भी अपने स्वभाव से ही हुआ है, जीव से नही। (१) बाल सफेद हैं, आप तो नहीं चाहते, तो कर दो काले। (२) शरीर का रंग काला है, आप तो नहीं चाहते, तो कर दो गोरा (३) शरीर मे बुखार है, आप तो नही चाहते, तो कर दो दूर । (४) बहरा है; वह तो नही चाहता, तो कर दो ठीक । (५) अन्धा है, वह तो नही चाहता, कर दो ठीक । (६) जुखाम-खांसी हो गया, आप तो नही चाहते, कर दो दूर। (७) फोडा हो गया, आप तो नहीं चाहते, कर दो ठीक । (८) बवासीर हो गई, आप तो नही चाहते, कर दो ठीक। (8) बुढापा आ गया, आप तो नही चाहते, कर दो ठीक (१०) धन सब चाहते है क्यो नही होता, ला दो तुम । (११) माल खाया जाता है, बनता है विष्टा, आप तो खून चाहते हैं, बना दा। (१२) टाँग कट गई, आप तो नही चाहते, जोड दो। याद रखो, शरीर मे जुकाम-खाँसी, फोडा-फुन्सी, कालागोरा यह पुदगल का स्वतन्त्र परिणमन है यह अपने स्वभाव से ही स्वय बदलता है क्योकि प्रत्येक द्रव्य कायम रहता हुआ, अपना प्रयोजनभूत कार्य करता हुआ स्वयं बदलता है-ऐसा वस्तु स्वभाव है। (अ) अनादि काल से आज तक अनन्त शरीर धारण किए, लेकिन एक रजकण भी अपना नहीं बना । (आ) केवली भगवान को अनन्त चतुष्टय प्रगटा है वह उसी समय चार अघातिकर्म और औदारिकशरीर का अभाव नही कर सकते हैं। उनका भक्त कहलाने वाला कहे, हम कर सकते है, यह आश्चर्य है। (इ) अज्ञानी को शरीरादि का कार्य में कर सकता हू ऐमा दिखता है। जैसे-चलती रेल में बैठ कर वाहर देखे, तो पेड चलते दिसते हैं। घोड़े के अण्डे के दृष्टान्त के समान समझना चाहिए।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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