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________________ ( ६६ ) सकता है, परन्तु आत्मा इन सब अवस्थाओ को एक साथ नही ला सकता, क्योकि 'ज्ञान पर का कुछ नही कर सकता है । (२) शरीर की नीरोग अवस्था या शरीर की रोग अवस्था मे से एक अवस्था हो, उस समय आत्मा दूसरी अवस्था का ज्ञान कर सकता है, परन्तु दूसरी अवस्था को नहीं ला सकता, क्योकि 'ज्ञान पर का कुछ नही कर सकता है ।' (३) एक क्षेत्रावगाही रूप से रहने वाला इस शरीर की एक अवस्था के समय, दूसरी अवस्थाओ का ज्ञान आत्मा कर सकता हैं । परन्तु आत्मा उन अवस्थाओ को ला नही सकता, बदल नही सकता है । तब अत्यन्त भिन्न, पर क्षेत्र मे रहने वाले पदार्थो की कोई भी अवस्था आत्मा ला सके, बदल सके, ऐसा त्रिकाल मे नही हो सकता है, क्योकि 'ज्ञान पर का कुछ नही कर सकता है । ( ४ ) बुखार आया, खाँसी हुई, क्षय रोग हुआ; बुढापा आया, बाल सफेद हो गए, मुह साँपो जैसा भट्टा बन जाता है, सिनक बहता है, दस्त लग जाते हैं फोडा हो जाता है, लडका मर जाता है, माल चोरी हो जाता है, आग लग जाती है, आत्मा इन सबका ज्ञान कर सकता है परन्तु इनमे जरा भी हेर-फेर नही कर सकता है ।' प्रश्न ४६ -- कोई मनीषी कहता है कि आप कहते हो कि जीव शरीर आदि पर द्रव्यों का कुछ नहीं कर सकता लेकिन हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि हमने भाव किया तो हाथ उठाया, हमने चलने का भाव किया तो चल निकले, हमने भाव किए - तो शब्द निकाला, यह बात कैसे है ? उत्तर - अज्ञानी को मिथ्यात्वरूपी पीलिया रोग हो गया है, इसलिए उसे जिनेन्द्र भगवान से विरुद्ध ही दिखता है। अच्छा भाई, तुम्हारे विचार मे जीव शरीरादि पर का कार्य कर सकता है। तो हम तुमसे पूछते हैं - देखो, यह हाथ सीधा था, अब टेढा हो गया, यह हमने किया । अव तुम इस हाथ को पीछे की तरफ लगा दो । वह कहता है कि ऐसा नही हो सकता, क्योंकि शरीर का ऐसा &
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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