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उत्तर-१) शरीर की क्रिया से, कर्म के क्षयादि से, शभभाव करने से धर्म की प्राप्ति होती है । (२) निमित्त मिले तो कल्याण हो। (३) दया-दान, पूजा-यात्रा-अणुव्रत-महाव्रतादि के गुभभायो ने गोवा होता है आदि कथन करने वाले कुदेवादिक हैं और जो एक माम अपनी आत्मा के आश्रय से ही धर्म की शुरूआत, वृद्धि और पूर्णता होती हे ऐसा कथन करने वाले वही सच्चे देवादिक है। इस सन्गे निमित्त से अपना आश्रय ले, तो 'ज्ञान चैतन्य चमकार-स्वस्त है। माना कहलायेगा।
प्रश्न ४४-'ज्ञान पर का कुछ नहीं कर सकता है यह रिग प्रकार है ?
उत्तर-एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर सकता; उमे परि. णमित नहीं कर सकता, प्रेरणा नहीं कर सकता; लाभ-हानि नही कर सकता, उस पर प्रभाव नही डाल सकता; उसकी सहायता या उपकार नहीं कर सकता। उसे मार-जिला नहीं सकता-ऐसी प्रत्येक द्रव्य-गुण-पर्याय की सम्पूर्ण स्वतन्त्रता अनन्त ज्ञानियो ने पुकार-पार कर कही है। क्योकि जगत मे छहा द्रव्य नित्य स्थिर रहकर प्राण ममय अपनी अवस्था का उत्पाद-व्यय करते रहते हैं। इस प्रकार अनन्त जड और चेतन द्रव्य एक-दूसरे से स्वतत्र है । इसलिए वास्तव मे किसी का नारा नही होता, कोई नया उत्पन्न नहीं होता है और न दूसरे उनको रक्षा कर सकते है, इसलिए ज्ञान पर का पुत्र नहीं कर सकता है।
प्रश्न ४५-'ज्ञान पर का कुछ नहीं कर सकता है। कुछ दृष्टांत देकर समझाइये?
उत्तर-(१) शरीर की बाल्य अवस्था के बाद तुमार लामा आती है। कुमार अवस्था के बाद युवा अवस्या आती है। अवस्था के बाद प्रौढ अवस्था आती है। प्रोढ अवरया के माल का अवस्था का, कुमार अवस्था का, युवा अवस्था का ज्ञान एएगा ।