SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६७ ) प्रश्न ४१ - अपनी आत्मा का विस्मय कैसे आवे ? उत्तर- [ उत्तर के लिए पहिले पाठ का प्रश्न ४५ देखो ] प्रश्न ४२ - अपनी आत्मा का विस्मय लाने का कोई दूसरा भी उपाय है ? उत्तर--जब तक सच्चे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति ना हो, अर्थात् जव तक अपना विस्मय ना आवे, तब तक इनको भी अनुक्रम ही से अगीकार करना । ( १ ) प्रथम तो परीक्षा द्वारा कुदेव, कुगुरू और कुधर्म की मान्यता छोडकर, अरिहन्त देवादिक का श्रद्धान करना चाहिए | क्योकि उनका श्रद्धान करने से गृहीत मिथ्यात्व का अभाव होता है । मोक्षमार्ग मे विघ्न करने वाले कुदेवादिक का निमित्त दूर होता है । (२) फिर जिनमत मे कहे हुए छह द्रव्य, सात तत्व, हेयउपादेय-ज्ञ ेय, त्यागने योग्य मिथ्यादर्शनादिक का स्वरूप और ग्रहण करने योग्य सम्यग्दर्शनादिक का स्वरूप, निश्चय व्यवहार, उपादान उपादेय, निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध, छह कारक, चार अभाव और छह सामान्य गुण आदि के नाम लक्षणादि सीखना चाहिए, क्योकि इस अभ्यास से तत्त्व श्रद्धान की प्राप्ति होती है । (३) फिर जिनसे स्त्र- पर का भिन्नत्व भासित हो, वैसे विचार करते रहना चाहिए, क्योकि इस अभ्यास से भेद ज्ञान होता है । ( ४ ) तत्पश्चात् एक स्व मे स्वपना मानने के हेतु स्वरूप का विचार करते रहना चाहिए, क्योकि इस अभ्यास से आत्मानुभव की प्राप्ति होती है । इस प्रकार अनुक्रम से अगीकार करके फिर उसी मे से किसी समय देवादिक के विचार मे, कभी तत्त्व विचार में, कभी स्व-पर के विचार मे तथा कभी आत्मविचार मे उपयोग लगाना चाहिए जीव पुरुषार्थ चालू रक्खे तो उसी क्रम से उसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति अर्थात् अपनी आत्मा का विस्मय आ जाता है । प्रश्न ४३ - मोक्षमार्ग मे विघ्न करने वाले कुदेवादिक की क्या पहिचान है ?
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy