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________________ स्वरूप है' कहा जाता है। (२) बहुत वस्तुओ का भोगना एक साथ नही हो सकता, परन्तु ज्ञान बहुत वस्तुओ का भोग एक समय मे एक साथ कर सकता है। इसलिए 'ज्ञान चैतन्य चमत्कार स्वरूप है' कहा जाता है। (३) एक बड़े कमरे मे कुर्सी, मेज, पलग, आदि अनेक चीजें पडी है आप उन्हे इकट्ठी नही कर सकते परन्तु ज्ञान मे एक साथ ले सकते है, इसीलिए 'ज्ञान चैतन्य चमत्कार स्वरूप है' कहा जाता है। (४) थाली मे ५० चीजो का एक साथ भोग नही हो सकता। परन्तु ज्ञान मे एक साथ भोग कर सकते हैं। इसलिए 'ज्ञान चैतन्य चमत्कार स्वरूप है' कहा जाता है। प्रश्न ३८-परवस्तु का विस्मय क्यो आता है ? उत्तर-चारो गतियो मे घूमकर निगोद मे जाने की तैयारी है। इसलिए अज्ञानियो को पर वस्तु का विस्मय आता है। प्रश्न ३६-पर वस्तु का विस्मय अज्ञानी किस-किस प्रकार करता है। उसका दृष्टान्त देकर समझाइये? ___ उत्तर-१) किसी के पास भूत-व्यन्तर आवे उसे सब नमस्कार करने पहुच जाते हैं क्योकि अज्ञानी को उसकी महिमा है इसलिए पर वस्तु का विस्मय आता है आत्मा का विस्मय नही आता है। (२) रूस ने बिना ड्राईवर का राकेट छोडा। उसका विस्मय अज्ञानी को आता है। परन्तु ज्ञान करने वाला स्वय ज्ञान स्वरूप है । उसका (अपनी आत्मा का) विस्मय नही आता है, क्योकि पर की महिमा है। (३) अज्ञानी २४ घण्टे नौ प्रकार के पक्षो मे पागल बन रहा है क्योकि वह अनादि से एक एक समय करके पर के विस्मय में पागल है। प्रश्न ४०- पर का विस्मयपना कैसे मिटे ? उत्तर- विस्मय करने वाले का जब तक विस्मय ना आवे, तव तक पर वस्तु का विस्मयपना नही मिटता है। इसलिए पात्र जीव का अपनी आत्मा का विस्मय लाना चाहिए।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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