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कहा है । (३) गा० ७४ में विरुद्धस्वभावी, अध्र ुव, अनित्य, अशरण, वर्तमान मे दुखरूप और भविष्य मे भी दुख का कारण कहा है। (४) गा० ३०६ मे विषकुम्भ कहा है । (५) समयसार गा० १५२ मे आत्मा का अनुभव हुए बिना व्रत-तप को बालव्रत और बालतप कहा है ।
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प्रश्न २६ - शुभभावो को छहढाला मे क्या क्या कहा है ? उत्तर- (१) पाँचवी ढाल मे "आस्रव दुखकार घनेरे, बुधिवन्त तिन्हे निरवेरे । जिन पुण्य-पाप नहि कीना, आतम अनुभव चित दीना तिन ही विधि आवत रोके, सम्वर लहि सुख अवलोके । " ( २ ) छठी ढाल मे 'यह राग- आग दहै सदा " कहा है । ( ३ ) दूसरी ढाल मे "शुभ-अशुभ बन्ध के फल मभार, रति- अरति करे निजपद विसार" कहा है । ( ४ ) पहली ढाल मे " जो विमानवासी हू थाय, सम्यकदर्शन बिन दुख पाय, " कहा है ।
प्रश्न ३० - प्रवचनसार मे शुभभावो को क्या कहा है ?
उत्तर - गाथा ११ की टीका मे "शुभोपयोग हेय" कहा है। गाथा ७७ मे 'पुण्यपाप मे जो अन्तर डालता है वह घोर अपार ससार मे भ्रमण करता है' ऐसा कहा है ।
प्रश्न ३१ - सोलह कारण की पूजा में पुण्यभाव को क्या कहा है ?
उत्तर- 'पुण्य-पाप सब नाश के, ज्ञानभानु परकाश ।' तथा मंगल को विधान मे 'पुण्य समग्रमहमेकमना जुहोमि' अर्थात् समस्त पुण्य एकाग्र चित्त से अग्नि मे हवन करता हू । देव-गुरु- शास्त्र की पूजा मे 'शुभ और अशुभ की ज्वाला से झुलसा है मेरा अन्तस्तल' ऐसा कहा है
प्रश्न ३२ - योगसार मे पुण्य को क्या कहा है ?
उत्तर - दोहा ७१ मे ज्ञानी पुण्य को पाप जानते हैं ऐसा कहा है ? प्रश्न ३३ - पुरुषार्थसिद्धि उपाय में पुण्य को क्या कहा है ? उत्तर - गा० २२० मे शुभोपयोग 'अपराध' ऐसा कहा है ।