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________________ ( ६२ ) उत्तर-जैसे-सूर्य का प्रकाश होने पर उल्लू को दिखाई नही देता; उसी प्रकार अज्ञानी मूढो को दृष्टिमोक्ष वाले जीव नहीं दिखते प्रश्न २२-बहुत से कहते है कि पंचम काल मे निश्चय सम्यक्त्व होता ही नहीं। क्या यह बात ठीक है ? उत्तर-बिल्कुल गलत है, क्योकि ज्ञानार्णव मे लिखा है कि इस काल मे दो-तीन सत्यपुरुष है, अर्थात थोडे है।" यह सिद्ध हुआ पचम काल मे मोक्ष है । इसलिए पात्र-जीवो को जानना चाहिए कि जिनमत मे जो मोक्ष का उपाय कहा है इससे मोक्ष होता ही होता है। इसलिए "ज्ञान को कोई काल या क्षेत्र विघ्न नही कर सकता।" यह सिद्ध हो गया। प्रश्न २३–'ज्ञान अविकारी है' यह किस प्रकार है ? उत्तर-ज्ञान अविकारी है अर्थात् ज्ञान मे विकार नही है । जैसे दस दिन पहले हमारी किसी के साथ लड़ाई हो गयी। लडाई के समय खूब लाल-पीले हुए । विचारो, वर्तमान समय मे लड़ाई का ज्ञान तो कर सकते है। लेकिन लडाई के समय जैसे-लाल-पीले हो रहे थे वैसे अब नहीं हो सकते और ज्ञान करते समय क्रोधादि भी मालूम नही पड़ता है। इसलिए यदि ज्ञान मे विकार हो तो ज्ञान के समय क्रोधादि भी होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता। इससे सिद्ध होता है ज्ञान मे विकार नही है। प्रश्न २४-'ज्ञान अविकारी है' इसका कोई दूसरा दृष्टान्त देकर समझाइये? उत्तर-आज से पाँच वर्ष पहले हमने किसी को कटुवचन कह दिया हो। तो आज ज्ञान करते समय ज्ञान मे कटुता आवेगी ? आप कहेगे, कभी नही । इसलिए यह सिद्ध हुआ ज्ञान अविकारी है। प्रश्न २५–क्या शुभाशुभ विकारी भाव भी आत्मा से पृथक हैं ? उत्तर-हाँ पृथक् है । उपयोग उपयोग मे है, क्रोधादि मे उपयोग
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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