________________
( ५८ )
यह कहने के लिए सत्य है, क्योकि व्याप्य व्यापकना एक ही द्रव्य मे होता है, दो द्रव्यो मे कभी भी नही होता है । [ कलश २१४]
प्रश्न १० - जहाँ दो द्रव्यों का कर्ता-कर्म लिखा हो, वहाँ क्या अर्थ जानना चाहिए ?
उत्तर - जहाँ पर दो द्रव्यो का कर्त्ता-कर्म लिखा हो वहाँ पर व्यवहार नय की मुख्यता सहित व्याख्यान है उसे " ऐसा है नही, किन्तु निमित्तादि की अपेक्षा से यह उपचार किया है" ऐसा जानना ।
प्रश्न ११ - कोई कहे हम तो शास्त्रों से, दिव्यध्वनि से, गुरु के वचनों से, कर्म के क्षयादि से और ज्ञेयों से ही ज्ञान मानेंगे, तो उसके लिये जिनवाणी में उसे किस-किस नाम से सम्बोधन किया है ?
उत्तर - (१) "तस्य देशना नास्ति" वह जिनवाणी सुनने के अयोग्य है | ( पुरुषार्थसिद्धयुपाय ) (२) वह पद-पद पर धोखा खाता है; ( प्रवचनसार) (३) ज्ञयो से ज्ञान होता है ऐसी श्रद्धा को मिथ्यादर्शन, ऐसे ज्ञान को मिथ्याज्ञान और ऐसे आचरण को मिथ्याचारित्र कहा है, ( समयसार गा० २७० ) ( ४ ) पर द्रव्य के कर्तृत्व का महा अहकार रूप अज्ञान अन्धकार है, जो अत्यन्त दुर्निवार है। ( समयसार कलश ५५)
प्रश्न १२ - 'ज्ञान अरूपी है' इससे क्या तात्पर्य रहा ?
उत्तर - अरे भाई । जैसे ज्ञान से पर का सम्बन्ध नही है, उसी प्रकार सुख के लिए पाचो इन्द्रियो के विषयो का, सम्यक दर्शन के लिए दर्शन मोहनीय के उपशमादिक का और चारित्र के लिए बाहरी क्रिया तथा शुभभावो की आवश्यकता नही है ।
प्रश्न १३ - " ज्ञान को कोई काल या क्षेत्र विघ्न नहीं कर सकता है" यह किस प्रकार है ?
उत्तर- (अ) ज्ञान को कोई काल चारो, पाँच मिनट पहले समय का ज्ञान और पांच वर्ष पहले के समय का ज्ञान
विघ्न नही कर सकता है । करने मे पाँच मिनट लगे करने मे पाँच वर्ष लगे ।